अपनी प्रशंसा सभी को अच्छी लगती है l कुछ लोग ऐसे होते हैं , जिनके काम करने का उद्देश्य प्रशंसा प्राप्त कारना , यश कमाना होता है l ----- एक राजा को दयालु कहलाने और अपनी प्रशंसा सुनने की ललक लगी l उसने एक दिन ऐसा निश्चय किया कि पक्षी पकड़ने वाले लोग दरबार में आएं और बंदी पक्षियों के मूल्य लेकर उन्हें स्वतंत्र कर दें l राजा की दयालुता का यश फैला l निश्चित दिन पर हजारों पिंजड़े खाली होते और राज्य - कोष से उन्हें धन मिलता l
एक मुनि - मनीषी वहां पहुंचे l दृश्य देखा तो बहुत दुःखी हुए l मुनि ने राजा को समझाया --- " आपकी यश- कामना इन निरीह पक्षियों को बहुत महँगी पड़ती है l लालच की पूर्ति के लिए असंख्य नए शिकारी पैदा हो गए और पकडे जाने के कुचक्र में अगणित पक्षियों को त्रास मिलता और प्राण जाते l यदि दयालुता का प्रदर्शन नहीं , पालन अभीष्ट है तो आप पक्षी पकड़ने पर प्रतिबन्ध लगाएं l राजा ने अपनी भूल समझी और दयालुता का प्रदर्शन छोड़कर वह नीति अपनायी , जिससे वस्तुत; दया - धर्म का पालन होता था l
एक मुनि - मनीषी वहां पहुंचे l दृश्य देखा तो बहुत दुःखी हुए l मुनि ने राजा को समझाया --- " आपकी यश- कामना इन निरीह पक्षियों को बहुत महँगी पड़ती है l लालच की पूर्ति के लिए असंख्य नए शिकारी पैदा हो गए और पकडे जाने के कुचक्र में अगणित पक्षियों को त्रास मिलता और प्राण जाते l यदि दयालुता का प्रदर्शन नहीं , पालन अभीष्ट है तो आप पक्षी पकड़ने पर प्रतिबन्ध लगाएं l राजा ने अपनी भूल समझी और दयालुता का प्रदर्शन छोड़कर वह नीति अपनायी , जिससे वस्तुत; दया - धर्म का पालन होता था l
No comments:
Post a Comment