किसी भी व्यक्ति के कर्म को काल नियंत्रित करता है l अपने समय से पहले न तो किसी को अपने कर्मों का फल भोगना होता है ``और न समय के जाने के बाद उसको भोगना शेष रहता है l इस सृष्टि में कभी किसी के साथ पक्षपात नहीं होता l सभी अपने कर्मों के अनुसार फल भोगते हैं l भगवान श्रीकृष्ण जो स्वयं लीला पुरुषोत्तम हैं l अपने स्पर्श मात्र से दूसरों का कल्याण करते हैं , उन्होंने भी ' जरा ' नामक बहेलिया का विषबुझा तीर लगने से अपने शरीर को छोड़ा l
यह भी उनका पिछला भोग था l इसके पहले जन्म में जब वे रामावतार के रूप में आये थे तो उन्होंने छिपकर बालि पर तीर चलकर उसे मारा था l भले ही उनके इस कर्म के पीछे सुग्रीव का हित था , लेकिन उन्हें कर्मफल भोगना पड़ा l उसी बालि ने ' जरा ' नाम के बहेलिये के रूप में छिपकर उनके ऊपर यह समझकर तीर चलाया कि जंगल में वहां कोई जानवर है l इस तरह भगवान श्रीकृष्ण का भोग पूरा हुआ l
यह भी उनका पिछला भोग था l इसके पहले जन्म में जब वे रामावतार के रूप में आये थे तो उन्होंने छिपकर बालि पर तीर चलकर उसे मारा था l भले ही उनके इस कर्म के पीछे सुग्रीव का हित था , लेकिन उन्हें कर्मफल भोगना पड़ा l उसी बालि ने ' जरा ' नाम के बहेलिये के रूप में छिपकर उनके ऊपर यह समझकर तीर चलाया कि जंगल में वहां कोई जानवर है l इस तरह भगवान श्रीकृष्ण का भोग पूरा हुआ l
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