पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी ने लिखा है --- ' केवल और केवल ' मैं ' का बोध ही अहंकार है l अहंकार रूपी ' मैं ' , सदा किसी और के अस्तित्व को चुनौती देता है और प्राणिमात्र में उपस्थित परमात्मा को एक तरह से नकार देता है l अहंकारी व्यक्ति की सम्यक जीवन दृष्टि समाप्त हो जाती है l कभी - कभी तो वह स्वयं को ही परमात्मा मान बैठता है l उसकी सोच - विचार और समझ सभी गलत होने लगते हैं l
अनीति , दुष्कर्म करते हुए भी मनुष्य को यह नहीं जान पड़ता कि कहीं कुछ गलत हो रहा है , बल्कि उसे लगता है कि जो कुछ हो रहा है वह नैसर्गिक है l अहंकारी मनुष्य का उचित - अनुचित का भेद चला जाता है और उसे कोई कुछ भी समझाए , उसका उस पर कोई प्रभाव पड़ता दिखाई नहीं पड़ता है l
रामकथा जिसे हम पीढ़ी - दर - पीढ़ी सुनते - सुनाते आये हैं , हमें बताती है कि राम और रावण , दोनों में बुनियादी फरक बस अहंकार को लेकर था l श्रीराम अहंकारशून्य थे , जबकि रावण के अहंकार की कोई सीमा नहीं थी l रावण की पत्नी मंदोदरी ने उसे कितना समझाया कि माता सीता साक्षात् जगदम्बा है लेकिन रावण ने एक न सुनी , उसका अहंकार उसे ले डूबा l
आचार्य श्री लिखते हैं --- अहंकार एक रोग के समान है , जिसकी औषधि एवं उपचार ---- सच्चिंतन , सद्ज्ञान अवं सेवाभाव में सन्निहित है l दुःखी , पीड़ित एवं व्यथित व्यक्तियों की निस्स्वार्थ एवं निष्काम सेवा से भी अहंकार की चट्टान टूटने - दरकने लगती है l अहंकार के मिटने पर ही विवेक का उदय होता है l
अनीति , दुष्कर्म करते हुए भी मनुष्य को यह नहीं जान पड़ता कि कहीं कुछ गलत हो रहा है , बल्कि उसे लगता है कि जो कुछ हो रहा है वह नैसर्गिक है l अहंकारी मनुष्य का उचित - अनुचित का भेद चला जाता है और उसे कोई कुछ भी समझाए , उसका उस पर कोई प्रभाव पड़ता दिखाई नहीं पड़ता है l
रामकथा जिसे हम पीढ़ी - दर - पीढ़ी सुनते - सुनाते आये हैं , हमें बताती है कि राम और रावण , दोनों में बुनियादी फरक बस अहंकार को लेकर था l श्रीराम अहंकारशून्य थे , जबकि रावण के अहंकार की कोई सीमा नहीं थी l रावण की पत्नी मंदोदरी ने उसे कितना समझाया कि माता सीता साक्षात् जगदम्बा है लेकिन रावण ने एक न सुनी , उसका अहंकार उसे ले डूबा l
आचार्य श्री लिखते हैं --- अहंकार एक रोग के समान है , जिसकी औषधि एवं उपचार ---- सच्चिंतन , सद्ज्ञान अवं सेवाभाव में सन्निहित है l दुःखी , पीड़ित एवं व्यथित व्यक्तियों की निस्स्वार्थ एवं निष्काम सेवा से भी अहंकार की चट्टान टूटने - दरकने लगती है l अहंकार के मिटने पर ही विवेक का उदय होता है l
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