कलकत्ता में स्वामी रामकृष्ण मठ की स्थापना हो चुकी थी , उनके सारे भक्त संन्यास लेकर मठ में प्रवेश कर चुके थे l मठ का सारा काम मठ से लगी जमीन पर चलता था l तभी कलकत्ते में प्लेग का प्रकोप हुआ l लोग बुरी तरह मरने लगे l स्वामी विवेकानन्द से यह देखा न गया , उन्होंने मठ को सेवा - सुश्रूषा शिविर में बदल दिया l सारे अध्यात्म साधकों को सेवा कार्य में लगा दिया और कहा ---- आज भगवान ने अपने सच्चे भक्तों और सच्चे संन्यासियों की परीक्षा ली है l आज मनुष्य और महामारी के बीच संग्राम छिड़ गया है l आज मठ के प्रत्येक संन्यासी को अपनी सच्चाई का प्रमाण देना है l ऐसी सेवा करो , इतनी परिचर्या करो , इतनी सहानुभूति बरसाओ कि मठ में आया हुआ कोई भी रोगी मृत्यु से पराजित न होने पाए l जब भक्तों ने पूछा इसके लिए इतना धन कहाँ से आएगा ? तो स्वामीजी ने कहा --- चिंता न करना , धन की कमी होने पर मठ की भूमि बेच दूंगा l ' स्वामीजी की प्रभावोत्पादक पुकार पर संन्यासी देवदूतों की भांति रोगियों की सेवा में जुट गए l
स्वामीजी का कहना था कि धर्म की महत्ता उसके आचरण में निहित है और विडंबना यह है की अपने श्रेष्ठ धर्म और संस्कृति के होते हुए भी भारतवासी तदनुरूप उसका आचरण नहीं करते l
स्वामीजी का कहना था कि धर्म की महत्ता उसके आचरण में निहित है और विडंबना यह है की अपने श्रेष्ठ धर्म और संस्कृति के होते हुए भी भारतवासी तदनुरूप उसका आचरण नहीं करते l
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