कामारपुकुर से कलकत्ता आने पर रामकृष्ण परमहंस के बड़े भाई ने उन्हें स्कूल में पढ़ाने की बहुत कोशिश की l इस पर उन्होंने साफ़ इनकार करते हुए कहा --- " दादा ! मैंने अक्षर ज्ञान पा लिया है , सत्साहित्य को पढ़ सकता हूँ l अब इस पेट भरने वाली शिक्षा को पढ़कर जिंदगी बरबाद नहीं करूँगा l मैं तो इनसान बनूँगा l ' और जुट गए अपने व्यक्तित्व को संवारने l जीवन विद्दा के आचार्य के रूप में ढालकर उन्होंने दक्षिणेश्वर मंदिर को जीवन विद्दा का केंद्र बनाया और जुट गए इंसानो को गढ़ने में l
विवेकानंद , अभेदानन्द , ब्रह्मानंद जैसे चमचमाते खरे व्यक्तित्व ढालकर उन्हें जीवन विद्दा के विस्तारक के रूप में समाज को समर्पित किया l विद्दा के आचार्यों को गढ़ने वाले इस महामानव की स्तुति में स्वामी विवेकानंद ने कहा है --- " वे आचार्यों के महा आचार्य थे l स्वामीजी कहते --- मेरे गुरु ने मुझे विद्दा दी है l इसको पाकर मैं दार्शनिक नहीं हुआ , तत्ववेत्ता भी नहीं बना हूँ l संत बनने का दावा नहीं करता , परन्तु मैं एक इन्सान हूँ और इन्सानों को प्यार करता हूँ l "
ब्रह्मानंद के शब्दों में --- ठाकुर हम लोगों से कहा करते थे ---- ' जब तुम सोलह आने बनोगे तब तुम्हे देखकर लोग आठ आने अपनाने की सकेंगे l " उनके ये शब्द आज भी लोक शिक्षक के लिए कसौटी हैं l
विवेकानंद , अभेदानन्द , ब्रह्मानंद जैसे चमचमाते खरे व्यक्तित्व ढालकर उन्हें जीवन विद्दा के विस्तारक के रूप में समाज को समर्पित किया l विद्दा के आचार्यों को गढ़ने वाले इस महामानव की स्तुति में स्वामी विवेकानंद ने कहा है --- " वे आचार्यों के महा आचार्य थे l स्वामीजी कहते --- मेरे गुरु ने मुझे विद्दा दी है l इसको पाकर मैं दार्शनिक नहीं हुआ , तत्ववेत्ता भी नहीं बना हूँ l संत बनने का दावा नहीं करता , परन्तु मैं एक इन्सान हूँ और इन्सानों को प्यार करता हूँ l "
ब्रह्मानंद के शब्दों में --- ठाकुर हम लोगों से कहा करते थे ---- ' जब तुम सोलह आने बनोगे तब तुम्हे देखकर लोग आठ आने अपनाने की सकेंगे l " उनके ये शब्द आज भी लोक शिक्षक के लिए कसौटी हैं l
No comments:
Post a Comment