पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी ने एक प्रसंग में वाङ्मय में लिखा है ----- ' अपनी हीन तथा निम्न वृत्तियों को संतुष्ट करने के लिए लोग प्राय: अहंकार का पालन किया करते हैं l वे मद में इतने मत्त हो जाते हैं कि इस बात का विचार ही नहीं करते कि उनके अहंकार के नीचे दबकर कितने निरपराध तथा असहाय लोगों का बलिदान हो रहा है ? किसी का भी त्याग और बलिदान व्यर्थ नहीं जाता l कम समझ लोग चाहे उसके प्रभाव को अनुभव न कर सकें और अदूरदर्शी भी तुरंत उसका कोई परिणाम न देखकर उसे व्यर्थ बताने लगें l पर तत्ववेत्ता इस बात को अच्छी तरह जानते हैं कि इस जगत में छोटे से छोटे काम की भी प्रतिक्रिया अवश्य होती है l
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