इनसान का जीवन लक्ष्य इनसानियत के अतिरिक्त और कुछ नहीं हो सकता l इसी को गोस्वामी तुलसीदास जी ने धर्म की परिभाषा के रूप में स्वीकार किया है ---- पर हित सरिस धर्म नहीं भाई ,
पर पीड़ा सम नहीं अधमाई l ' जिसे दूसरे की पीड़ा को देखकर स्वयं भी पीड़ा का अनुभव होता है , उसे देखकर ही यह कहा जा सकता है कि इसके भीतर इनसानियत है l यह इनसानियत की भावना ही हमें जानवरों से भिन्न करती है और हमें , हमारे जीवन लक्ष्य से परिचित कराती है l इसी को ध्यान में रखकर पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी ने प्रज्ञा पुराण में लिखा है --- " परोपकार रहित मनुष्य के जीवन को धिक्कार है , उसकी तुलना में तो पशु श्रेष्ठ हैं -- उसका कम - से - कम चमड़ा तो काम आ जायेगा , परन्तु मानवता रहित मनुष्य का जीवन तो किसी के भी उपयोग का नहीं रहता l हमें इनसानियत को ही अपना जीवन लक्ष्य मानकर जीवन जीना चाहिए l "
पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं --- ' परमात्मा ने मनुष्य को जिस विशेष गुण से नवाजा है उसका नाम है ---- संवेदना l भाव - संवेदना ही मनुष्य की आत्मिक प्रगति की सच्ची कसौटी है l मनुष्य यदि संवेदना की विभूति से आभूषित नहीं है तो उसका जीवन मृतप्राय ही कहा जा सकता है l ' इनसान होकर भी जिसमे इनसानियत का अभाव है , दूसरे मनुष्यों को , पशु - पक्षियों को पीड़ित करता है , वह पैशाचिक प्रवृति का मनुष्य है l आचार्य जी लिखते हैं --- जो लोग दुर्जनों की तरह व्यवहार कर रहे हैं एवं प्राणीमात्र को संताप देते दिखाई पड़ते हैं , उन्हें स्वयं से यह प्रश्न पूछने की आवश्यकता है कि उनका आचरण पशुओं के समान है या सत्पुरुषों के समान ! '
पर पीड़ा सम नहीं अधमाई l ' जिसे दूसरे की पीड़ा को देखकर स्वयं भी पीड़ा का अनुभव होता है , उसे देखकर ही यह कहा जा सकता है कि इसके भीतर इनसानियत है l यह इनसानियत की भावना ही हमें जानवरों से भिन्न करती है और हमें , हमारे जीवन लक्ष्य से परिचित कराती है l इसी को ध्यान में रखकर पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी ने प्रज्ञा पुराण में लिखा है --- " परोपकार रहित मनुष्य के जीवन को धिक्कार है , उसकी तुलना में तो पशु श्रेष्ठ हैं -- उसका कम - से - कम चमड़ा तो काम आ जायेगा , परन्तु मानवता रहित मनुष्य का जीवन तो किसी के भी उपयोग का नहीं रहता l हमें इनसानियत को ही अपना जीवन लक्ष्य मानकर जीवन जीना चाहिए l "
पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं --- ' परमात्मा ने मनुष्य को जिस विशेष गुण से नवाजा है उसका नाम है ---- संवेदना l भाव - संवेदना ही मनुष्य की आत्मिक प्रगति की सच्ची कसौटी है l मनुष्य यदि संवेदना की विभूति से आभूषित नहीं है तो उसका जीवन मृतप्राय ही कहा जा सकता है l ' इनसान होकर भी जिसमे इनसानियत का अभाव है , दूसरे मनुष्यों को , पशु - पक्षियों को पीड़ित करता है , वह पैशाचिक प्रवृति का मनुष्य है l आचार्य जी लिखते हैं --- जो लोग दुर्जनों की तरह व्यवहार कर रहे हैं एवं प्राणीमात्र को संताप देते दिखाई पड़ते हैं , उन्हें स्वयं से यह प्रश्न पूछने की आवश्यकता है कि उनका आचरण पशुओं के समान है या सत्पुरुषों के समान ! '
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