अहंकारी व्यक्ति स्वयं को श्रेष्ठ समझता है और हर किसी को अपने अनुसार चलाना चाहता है l अपने इस दुर्गुण की वजह से वह समाज को तो उत्पीड़ित करता ही है , यह अहंकार उसके स्वयं के लिए कितना घातक है , यह ' युग गीता ' के इस लेख के अंश से स्पष्ट है ----" सारी तकलीफें अहंकार के साथ जुड़ी हैं l अहंकार कांटे की तरह चुभता है , घाव की तरह रिसता है l एक आदमी अपने पास से निकला --- उसने नमस्कार नहीं किया , चरण नहीं छुए , बस , समझो कि आरम्भ हो गई तकलीफ l बात कुछ नहीं , बस , अपने अहंकार का घाव दुःख गया l इस अहंकार के कारण रोज नई - नई तकलीफें होती है l किसी की हँसी , किसी की ख़ुशी , सभी कुछ तो तकलीफ देती है l अहंकार घाव है , फिर हर चीज उसी में लगती है l जब तक कुछ न लगे अहंकारी की बेचैनी बढ़ती ही जाती है कि आज बात क्या है , अपने अहंकार से कोई टकराया ही नहीं l हालाँकि हमसे हमारे अहंकार से किसी को मतलब नहीं है l फिर भी अहंकार को सबसे मतलब है l अहंकार अपने लिए नरक की सृष्टि करता ही रहता है l "
गीता में भगवान ने कहा है -- सारे कर्म प्रभु को अर्पित करने से जीवन का नरक चला जाता है , हम केवल निमित हैं l हम न करेंगे तो कोई और करेगा , हम ही ईश्वर का कार्य करने के पुण्य से वंचित रह जायेंगे l
अहंकारविहीन होने में ही जीवन का सच्चा आनंद है l
गीता में भगवान ने कहा है -- सारे कर्म प्रभु को अर्पित करने से जीवन का नरक चला जाता है , हम केवल निमित हैं l हम न करेंगे तो कोई और करेगा , हम ही ईश्वर का कार्य करने के पुण्य से वंचित रह जायेंगे l
अहंकारविहीन होने में ही जीवन का सच्चा आनंद है l
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