पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी ने लिखा है ---- ' हम सबको जो जीवन मिला है वह काल का सुनिश्चित खंड है l इसी काल खंड में हमें कर्म करने एवं भोगने हैं l काल का जो वर्तमान खंड है , उसमे हम अपने मनचाहे कर्म कर सकते हैं l इस अवधि में हम जो भी कर्म करते हैं उसका प्रभाव हमारे भूतकाल में हो चुके कर्मों पर पड़ता है और भविष्य पर भी l यदि भूतकाल में , पुराने अतीत में हमसे कुछ गलतियां हुईं हैं तो वर्तमान के शुभ कर्मों से उनका परिमार्जन एवं प्रायश्चित किया जा सकता है l वर्तमान के ये शुभ कर्म हमारे उज्जवल भविष्य का निर्माण करने में भी समर्थ हैं l '
आचार्य श्री आगे लिखते हैं ---- जो जीवन के इस सच से सुपरिचित हैं , वे अपने जीवन के प्रत्येक क्षण का सदुपयोग करते हैं और प्रतिक्षण - प्रतिपल शुभ कर्मों के संपादन में संलग्न रहते हैं l इसके विपरीत जो इस सच से अपरिचित हैं , उन्हें कभी मोह बांधता है , कभी वासना खींचती है और कभी ऐसे लोग अहंता के उन्माद में अशुभ कर्म करते हैं l '
' कर्म करने के लिए एक सीमा तक हमें स्वतंत्रता है l हम अपने वर्तमान काल में बहुत कुछ मनचाहा कर सकते हैं , परन्तु उचित समय पर जब ये कर्म कल के गर्भ में परिपक्व हो जाते हैं तो इनके परिणाम को भोगने के लिए हमें विवश होना पड़ता है l '
आचार्य जी कहते हैं ----- ' जीवन काल और कर्म का सुखद संयोग है l जो जीवन के इस मर्म को समझते हैं वे सदा शुभ कर्म करते हैं , उनके लिए काल का प्रत्येक क्षण शुभ होता है और जो अशुभ कर्म करते हैं उनके लिए काल का प्रत्येक क्षण अशुभ होता है l माँ आदिशक्ति काल और कर्म की नियंता होने के कारण महाकाली कहलाती हैं l वही जब शुभ कर्मों का सत्परिणाम देती हैं तब महालक्ष्मी कही जाती हैं l '
आचार्य श्री आगे लिखते हैं ---- जो जीवन के इस सच से सुपरिचित हैं , वे अपने जीवन के प्रत्येक क्षण का सदुपयोग करते हैं और प्रतिक्षण - प्रतिपल शुभ कर्मों के संपादन में संलग्न रहते हैं l इसके विपरीत जो इस सच से अपरिचित हैं , उन्हें कभी मोह बांधता है , कभी वासना खींचती है और कभी ऐसे लोग अहंता के उन्माद में अशुभ कर्म करते हैं l '
' कर्म करने के लिए एक सीमा तक हमें स्वतंत्रता है l हम अपने वर्तमान काल में बहुत कुछ मनचाहा कर सकते हैं , परन्तु उचित समय पर जब ये कर्म कल के गर्भ में परिपक्व हो जाते हैं तो इनके परिणाम को भोगने के लिए हमें विवश होना पड़ता है l '
आचार्य जी कहते हैं ----- ' जीवन काल और कर्म का सुखद संयोग है l जो जीवन के इस मर्म को समझते हैं वे सदा शुभ कर्म करते हैं , उनके लिए काल का प्रत्येक क्षण शुभ होता है और जो अशुभ कर्म करते हैं उनके लिए काल का प्रत्येक क्षण अशुभ होता है l माँ आदिशक्ति काल और कर्म की नियंता होने के कारण महाकाली कहलाती हैं l वही जब शुभ कर्मों का सत्परिणाम देती हैं तब महालक्ष्मी कही जाती हैं l '
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