पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी का कहना है कि ----- ' ईर्ष्या इनसान से हैवान की ओर -- पतन की राह पर धकेल देती है l यह इंसानियत की विशेषता नहीं वरन नर पिशाच - नर कीटक का मूल्यहीन मानदंड है l '
मानव मन के मर्मज्ञ मानते हैं कि ईर्ष्या का प्रार्दुभाव एक समान स्तर पर होता है l एक ही कक्षा में पढ़ने वाले छात्रों के बीच , एक ही विषय लेने वालों के बीच ईर्ष्या होती है l इसी प्रकार कार्यालय में काम करने वाले एक समान पद वालों के बीच ईर्ष्या पैदा होती है l ऑफीसर की क्लर्क के साथ या क्लर्क की चपरासी के साथ ईर्ष्या नहीं होती l
आचार्य श्री लिखते हैं --- हम जिससे ईर्ष्या करते हैं , उसके जैसा बनना चाहते हैं l ऐसा न बन पाने की अतृप्ति हमें ईर्ष्यालु बना देती है l हम उस व्यक्ति की विशिष्टता को सम्मान नहीं दे पाते जो हमारे अंदर नहीं है l जिससे हम ईर्ष्या करते हैं उसकी निंदा करने से भी नहीं चूकते और साथ में यह भी चाहते हैं कि लोग उसकी घोर उपेक्षा करें , उसे प्रताड़ित करें l और जब कभी ऐसा होता है , तो हमें एक अजीब सी ख़ुशी मिलती है l
बिना वजह सिर्फ ईर्ष्या के कारण किसी की उपेक्षा करना , उसे प्रताड़ित करना ऐसा दुर्गुण है जो ईर्ष्यालु व्यक्ति को हैवान बना देता है l ईर्ष्यालु व्यक्ति को तो हम नहीं सुधार सकते , न ही समझा सकते l लेकिन उसकी इस मन: स्थिति को समझ कर स्वयं को इतना मजबूत बना सकते हैं कि उसके द्वारा हमें प्रताड़ित करने वाली हरकतों को उसकी मानसिक बीमारी समझकर इग्नोर कर सकें , उसका अपने व्यक्तित्व पर कोई असर न होने दें l दुष्ट व्यक्तियों से न दोस्ती अच्छी न दुश्मनी l ऐसे व्यक्तियों से दूर रहने में भलाई है
मानव मन के मर्मज्ञ मानते हैं कि ईर्ष्या का प्रार्दुभाव एक समान स्तर पर होता है l एक ही कक्षा में पढ़ने वाले छात्रों के बीच , एक ही विषय लेने वालों के बीच ईर्ष्या होती है l इसी प्रकार कार्यालय में काम करने वाले एक समान पद वालों के बीच ईर्ष्या पैदा होती है l ऑफीसर की क्लर्क के साथ या क्लर्क की चपरासी के साथ ईर्ष्या नहीं होती l
आचार्य श्री लिखते हैं --- हम जिससे ईर्ष्या करते हैं , उसके जैसा बनना चाहते हैं l ऐसा न बन पाने की अतृप्ति हमें ईर्ष्यालु बना देती है l हम उस व्यक्ति की विशिष्टता को सम्मान नहीं दे पाते जो हमारे अंदर नहीं है l जिससे हम ईर्ष्या करते हैं उसकी निंदा करने से भी नहीं चूकते और साथ में यह भी चाहते हैं कि लोग उसकी घोर उपेक्षा करें , उसे प्रताड़ित करें l और जब कभी ऐसा होता है , तो हमें एक अजीब सी ख़ुशी मिलती है l
बिना वजह सिर्फ ईर्ष्या के कारण किसी की उपेक्षा करना , उसे प्रताड़ित करना ऐसा दुर्गुण है जो ईर्ष्यालु व्यक्ति को हैवान बना देता है l ईर्ष्यालु व्यक्ति को तो हम नहीं सुधार सकते , न ही समझा सकते l लेकिन उसकी इस मन: स्थिति को समझ कर स्वयं को इतना मजबूत बना सकते हैं कि उसके द्वारा हमें प्रताड़ित करने वाली हरकतों को उसकी मानसिक बीमारी समझकर इग्नोर कर सकें , उसका अपने व्यक्तित्व पर कोई असर न होने दें l दुष्ट व्यक्तियों से न दोस्ती अच्छी न दुश्मनी l ऐसे व्यक्तियों से दूर रहने में भलाई है
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