पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी ने लिखा है --- भौतिक जगत में जिसने काल को पहचान लिया और काल अर्थात समय का सही - सही सदुपयोग करना सीख गया , तो समय की यह आराधना ही महाकाल की उपासना है l '
' अखण्ड ज्योति ' में प्रकाशित एक घटना है जो एक ऐसे सूक्ष्म संसार की है जहाँ का टाइम - स्केल स्थूल जगत से भिन्न है ------ ' घटना हाबड़ा प. बंगाल के प्रसिद्ध संत शिव रामकिंकर योगत्रयानन्द के जीवन से संबद्ध है , उन्हें पाणिनि व्याकरण पर पतंजलि कृत महाभाष्य पढ़ने की तीव्र इच्छा थी l बंगाल में उन दिनों इसे पढ़ाने के लिए कोई विद्वान नहीं मिल सका l अत: महाभाष्य पढ़ने के लिए वे बनारस गए l तब वहां व्याकरण आचार्यों में पंडित गोविन्द शास्त्री का बड़ा नाम था l शिव रामकिंकर ने एक दिन उनसे इस आशय का निवेदन किया , तो उन्होंने समय न होने का बहाना कहकर लौटा दिया l दूसरे दिन उन्होंने फिर निवेदन किया , तब भी उन्होंने अवकाश न होने का बहाना किया l
तीसरे दिन शिव रामकिंकर फिर उनके पास गए और उनके पैर पकड़ कर बड़े दीन भाव से उनसे समय निकाल कर उन्हें पढ़ाने का निवेदन किया , किन्तु आचार्य क्रुद्ध हो गए और पैर झटकते हुए उन्हें वहां से चले जाने को कहा l
शिव रामकिंकर जी इस अपमान व उपेक्षा से बहुत दुःखी हुए , बिना खाना खाये सो गए , लेकिन नींद कहाँ थी , सोच रहे थे कि ' मैं कितना अभागा हूँ l जिज्ञासा होने पर भी कोई ज्ञान - दान करने वाला नहीं है l ' मध्य रात्रि को उनकी आँख लग गई l फिर एक घंटे बाद अचानक आँख खुली तो देखा कमरे में दिव्य आलोक था , एक तेजस्वी काया अति सौम्य किन्तु बहुत वृद्ध उनके सामने थी , उसने कहा ---- " दुःख मत कर l किसी ने तुम्हे महाभाष्य नहीं पढ़ाया तो क्या हुआ ? मैं पढ़ाऊंगा l जा ग्रन्थ ले आ l " शिव रामकिंकर जी ने उन महापुरुष को साष्टांग प्रणाम किया और महाभाष्य ले आये l इसके बाद उन दिव्य पुरुष ने आरम्भ से अंत तक प्रत्येक सूत्र की विशद व्याख्या की और ग्रन्थ जब समाप्त हुआ तब आशीर्वाद देकर चले गए l चेतना लौटने पर शिव रामकिंकर जी बहुत खुश हुए और अपने भाग्य को सराहने लगे l तभी उन्होंने दीवार पर लगी घड़ी में देखा तो आश्चर्य ! केवल पंद्रह मिनट बीते थे l वह महाभाष्य इतना मोटा था कि पंद्रह घंटे में भी उसको पढ़ना और समझना संभव नहीं था l उन्हें घोर आश्चर्य हुआ कि प्रत्येक सूत्र की व्याख्या उनके मस्तिष्क में है , देव पुरुष ने उन्हें पूरा ग्रन्थ पढ़ाया लेकिन इतने कम समय में यह अध्यापन कैसे संभव हुआ ? इस उलझन को वे किसी भी प्रकार नहीं सुलझा पाए l
प्रभु ईसा , महावीर , मुहम्मद साहब सबने इस एक तथ्य को स्वीकार किया है कि ईश्वर के राज्य में समय का अस्तित्व नहीं रहता l
' अखण्ड ज्योति ' में प्रकाशित एक घटना है जो एक ऐसे सूक्ष्म संसार की है जहाँ का टाइम - स्केल स्थूल जगत से भिन्न है ------ ' घटना हाबड़ा प. बंगाल के प्रसिद्ध संत शिव रामकिंकर योगत्रयानन्द के जीवन से संबद्ध है , उन्हें पाणिनि व्याकरण पर पतंजलि कृत महाभाष्य पढ़ने की तीव्र इच्छा थी l बंगाल में उन दिनों इसे पढ़ाने के लिए कोई विद्वान नहीं मिल सका l अत: महाभाष्य पढ़ने के लिए वे बनारस गए l तब वहां व्याकरण आचार्यों में पंडित गोविन्द शास्त्री का बड़ा नाम था l शिव रामकिंकर ने एक दिन उनसे इस आशय का निवेदन किया , तो उन्होंने समय न होने का बहाना कहकर लौटा दिया l दूसरे दिन उन्होंने फिर निवेदन किया , तब भी उन्होंने अवकाश न होने का बहाना किया l
तीसरे दिन शिव रामकिंकर फिर उनके पास गए और उनके पैर पकड़ कर बड़े दीन भाव से उनसे समय निकाल कर उन्हें पढ़ाने का निवेदन किया , किन्तु आचार्य क्रुद्ध हो गए और पैर झटकते हुए उन्हें वहां से चले जाने को कहा l
शिव रामकिंकर जी इस अपमान व उपेक्षा से बहुत दुःखी हुए , बिना खाना खाये सो गए , लेकिन नींद कहाँ थी , सोच रहे थे कि ' मैं कितना अभागा हूँ l जिज्ञासा होने पर भी कोई ज्ञान - दान करने वाला नहीं है l ' मध्य रात्रि को उनकी आँख लग गई l फिर एक घंटे बाद अचानक आँख खुली तो देखा कमरे में दिव्य आलोक था , एक तेजस्वी काया अति सौम्य किन्तु बहुत वृद्ध उनके सामने थी , उसने कहा ---- " दुःख मत कर l किसी ने तुम्हे महाभाष्य नहीं पढ़ाया तो क्या हुआ ? मैं पढ़ाऊंगा l जा ग्रन्थ ले आ l " शिव रामकिंकर जी ने उन महापुरुष को साष्टांग प्रणाम किया और महाभाष्य ले आये l इसके बाद उन दिव्य पुरुष ने आरम्भ से अंत तक प्रत्येक सूत्र की विशद व्याख्या की और ग्रन्थ जब समाप्त हुआ तब आशीर्वाद देकर चले गए l चेतना लौटने पर शिव रामकिंकर जी बहुत खुश हुए और अपने भाग्य को सराहने लगे l तभी उन्होंने दीवार पर लगी घड़ी में देखा तो आश्चर्य ! केवल पंद्रह मिनट बीते थे l वह महाभाष्य इतना मोटा था कि पंद्रह घंटे में भी उसको पढ़ना और समझना संभव नहीं था l उन्हें घोर आश्चर्य हुआ कि प्रत्येक सूत्र की व्याख्या उनके मस्तिष्क में है , देव पुरुष ने उन्हें पूरा ग्रन्थ पढ़ाया लेकिन इतने कम समय में यह अध्यापन कैसे संभव हुआ ? इस उलझन को वे किसी भी प्रकार नहीं सुलझा पाए l
प्रभु ईसा , महावीर , मुहम्मद साहब सबने इस एक तथ्य को स्वीकार किया है कि ईश्वर के राज्य में समय का अस्तित्व नहीं रहता l
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