कहते हैं कम से कम 21 दिन या एक - दो महीने किसी भी कार्य को लगातार किया जाये , या कोई स्थिति लगातार बनी रहे तो उसकी आदत बन जाती है l फिर यदि कोई बात युगों तक बनी रहे तो वह लोगों के मन - मस्तिष्क में गहरी जड़ जमा लेती है l लोग यह समझने लगते हैं कि उनका जन्म ही इस स्थिति के लिए हुआ है l यह बात सब पर लागू होती है जैसे -- पुरुष - प्रधानता --पुरुष द्वारा नारी पर अत्याचार , उच्च जाति का समझने के कारण अपने से निम्न का शोषण , अमीर द्वारा गरीब का शोषण , शक्तिशाली देश द्वारा कमजोर राष्ट्र को गुलाम बनाना l संक्षेप में कहें तो जिसे दूसरों को गुलाम बनाने की आदत है , वह अपनी इस आदत को कार्य रूप देने के लिए नए - नए तरीके खोज लेता है और जिसे गुलामी में रहने की आदत है , वह इस सुप्त अवस्था में रहने को अपना भाग्य मानकर स्वीकार कर लेता है , जागता नहीं है l कोई इक्का - दुक्का जागरूक हो भी जाये तो उसे ऊँचा उठने में कोई सहयोग नहीं करता , लेकिन गिराने के लिए सब संगठित हो जाते हैं l ' जियो और जीने दो ' को नहीं मानता l अपने अहंकार के लिए दूसरे के अस्तित्व को मिटाने को आतुर है l
यह मानव जाति का सबसे बड़ा दुर्भाग्य है कि जो प्रकृति उसे बिना मांगे जीवन देती है , भूमि , जल , वायु , प्राण शक्ति सभी कुछ स्नेह से देती है , अब उसी पर अपना नियंत्रण कर के मनुष्य पता नहीं और क्या चाहता है l अपनी इस महत्वाकांक्षा से वह प्रकृति को क्रुद्ध कर देता है l प्रकृति कितना भी प्रकोप दिखाए , मनुष्य सुधरता नहीं है l
यह मानव जाति का सबसे बड़ा दुर्भाग्य है कि जो प्रकृति उसे बिना मांगे जीवन देती है , भूमि , जल , वायु , प्राण शक्ति सभी कुछ स्नेह से देती है , अब उसी पर अपना नियंत्रण कर के मनुष्य पता नहीं और क्या चाहता है l अपनी इस महत्वाकांक्षा से वह प्रकृति को क्रुद्ध कर देता है l प्रकृति कितना भी प्रकोप दिखाए , मनुष्य सुधरता नहीं है l
Very nice, thank you for sharing these thoughts with us.
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