पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी का कहना है कि ----' संसार की समस्याओं का एकमात्र हल --- संवेदना है l औरों का दुःख जिसे अपना लगता हो , वही अपनी संवेदना के प्रवाह से औरों को संवेदनशील बनाने की क्षमता रखता है l '
स्वयं को विकसित और सभ्य कहलाने वाला मनुष्य संवेदनहीन है , इसी कारण वह अपनी शक्ति , साधन और ज्ञान का उपयोग अपने स्वार्थ और अपनी महत्वाकांक्षा पूर्ति के लिए करने लगा है l शक्ति के दुरूपयोग ने किस प्रकार मानवता को हानि पहुंचाई है , यह संसार कई बार देख चुका है l
महान वैज्ञानिक आइन्स्टीन ने विज्ञानं की साधना एक तपस्वी के रूप में की थी , लेकिन जब उसे ही मानव जाति के विनाश में प्रयुक्त होते देखा तो उनकी आत्मा बिलख उठी थी l वे इस दुःख को भुलाने के लिए कभी - कभी संगीत का सहारा लिया करते थे l वे एक अच्छे वायलिन वादक थे l वायलिन बजाते तो ऐसी दर्दीली धुनें निकालते कि उनका अपना दर्द उस प्रवाह में खो जाता l उन्होंने विज्ञान को मानव - सेवा का एक साधन मानकर ही अपनाया था , साथ ही विश्व बंधुत्व और विश्व शांति के लिए एकनिष्ठ होकर कार्य किया था l
स्वयं को विकसित और सभ्य कहलाने वाला मनुष्य संवेदनहीन है , इसी कारण वह अपनी शक्ति , साधन और ज्ञान का उपयोग अपने स्वार्थ और अपनी महत्वाकांक्षा पूर्ति के लिए करने लगा है l शक्ति के दुरूपयोग ने किस प्रकार मानवता को हानि पहुंचाई है , यह संसार कई बार देख चुका है l
महान वैज्ञानिक आइन्स्टीन ने विज्ञानं की साधना एक तपस्वी के रूप में की थी , लेकिन जब उसे ही मानव जाति के विनाश में प्रयुक्त होते देखा तो उनकी आत्मा बिलख उठी थी l वे इस दुःख को भुलाने के लिए कभी - कभी संगीत का सहारा लिया करते थे l वे एक अच्छे वायलिन वादक थे l वायलिन बजाते तो ऐसी दर्दीली धुनें निकालते कि उनका अपना दर्द उस प्रवाह में खो जाता l उन्होंने विज्ञान को मानव - सेवा का एक साधन मानकर ही अपनाया था , साथ ही विश्व बंधुत्व और विश्व शांति के लिए एकनिष्ठ होकर कार्य किया था l
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