आचार्य श्री ने लिखा है --- कथा - उपदेश का जनता पर प्रभाव तब पड़ता है , जब उसके पीछे आस्था का बल हो , और यह बल उपदेशों को पहले अपने जीवन में उतारने से आता है l भागवत करुणा और भक्ति का शास्त्र है l आचार्य श्री के पिता पंडित रूपकिशोर जी अपने क्षेत्र में भागवत व्यास के रूप में श्रद्धा की दृष्टि से देखे जाते थे l उनके जीवन की एक घटना है ------ पंडितजी कथा कहने जा रहे थे कि रास्ते में उनकी मुलाकात धांधू नामक डकैत से हुई , वह कहने लगा ---- आप ब्राह्मण देवता हैं , आपका अनादर तो नहीं करूँगा , लेकिन मैं दस्यु हूँ l लूटना छोड़ दूँ तो अपना और आश्रितों का निर्वाह कैसे करूँगा ? इसलिए आपके साथ बल प्रयोग नहीं करूँगा सिर्फ यही चाहूंगा कि आपके पास जो कुछ भी है वह चुपचाप रख दें l पंडित जी निश्चिन्त भाव से धांधू को निहारने लगे l यह देख डाकू अचरज में पड़ गया और बोला , पंडित जी मैंने जो कहा , वह आपने सुन लिया l पंडित जी ने कहा --- सुन लिया है , पर मैं अभी तुम्हे कानी कौड़ी भी नहीं दूंगा l अगर कथा सुनने चलते हो तो वचन देता हूँ कि वहां जो भी दान - दक्षिणा आएगी सब तुम्हे सौंप दूंगा l पंडित जी की आवाज में प्रभाव था कि डाकू कथा सुनने के लिए तैयार हो गया और उनके साथ चल पड़ा l भागवत सप्ताह की पूरी अवधि में उसने ध्यान से कथा सुनी l भागवत सप्ताह पूरा होने के बाद पंडित जी ने दान - दक्षिणा समेटकर धांधू के हाथ में सौंपी l रूपये , पैसे , आभूषण , मेवे , मिठाई से गठरी बंध गई थी l डाकू ने गठरी उठाई , सिर पर रखी और बोला --- आदेश करें प्रभुजी , किधर चलना है l पंडित जी ने कहा --- जहाँ तुम ले जाना चाहते हो ले जाओ , मैंने अपना वचन पूरा कर दिया l धांधू ने गठरी उतार कर एक तरफ रख दी और पंडित जी के पाँव में लोट गया , जोर - जोर से रोने लगा और कह रहा था -- भगवन क्षमा करें , मुझे राह मिल गई , अब मैं मेहनत और ईमानदारी की कमाई ही खाऊंगा और उसी से परिवार का गुजारा करूँगा l ' जिसने भी देखा उसे विश्वास ही नहीं हुआ कि धांधू बदल गया l
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