मनुष्य को यह जन्म अपनी प्रगति और विकास के लिए मिला है और उसे सदा इस दिशा में प्रयत्नशील रहना चाहिए l ऋषि पुलस्त्य के पुत्र विश्रवा को एक कुरूप और बेडौल पुत्र उत्पन्न हुआ l उसका नाम था कुबेर l उसे देखकर सभी घरवाले खिन्न हो गए l बालक कुबेर जब बड़ा हुआ तो उसे अपनी ये उपेक्षा सहन नहीं हुई l उसने अपनी योग्यता बढ़ाने का निश्चय किया l वह कठोर तप द्वारा धनाधीश लोकपाल बनकर अलकापुरी में राज्य करने लगा l जो लोग पहले कुबेर का उपहास करते थे , उन्हें कुबेर के समक्ष नतमस्तक होना पड़ा l लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक कहा करते थे ---- " मैं संसार में एकमात्र वस्तु को पवित्र मानता हूँ और वह है ---- मनुष्य का अपनी प्रगति के लिए किया गया अनवरत प्रयास l मानव - मात्र के प्रति निश्छल प्रेमभाव रखते हुए और ईर्ष्या - द्वेष आदि कलुषित भावनाओं से दूर रहकर निष्काम भाव से श्रमशील रहने की भावना ही जीवन की सर्वोच्च साधना है l "
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