पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी का कहना है ---- ' प्रौढ़ता का संबंध आयु से नहीं विवेक से है l बड़प्पन होना चाहिए l ' एक कहानी है ----- एक बार नदी के किनारे की रेत पर कुछ बच्चे खेल रहे थे l उन्होंने उस रेत पर ही रेत के मकान बनाए थे , और उन बच्चों में से हर एक यह कह रहा था , यह वाला घर मेरा है , कोई कह रहा था वह वाला मेरा है और वही सबसे अच्छा है , उसके जैसा दूसरा कोई भी नहीं है l इसे कोई नहीं पा सकता l ऐसे ही कई तरह की बातें करते हुए वे बच्चे खेलते रहे l जब उनमें से किसी ने किसी का घर तोड़ दिया तो उनमे लड़ाई - झगड़ा भी खूब हुआ l लेकिन तभी सांझ का अँधेरा घिरने लगा l अब तो बच्चों को अपने घर की याद सताने लगी l अपने घर की याद आते ही उन्हें झूठे घरों से तनिक भी मोह न रहा l पूरे दिन जिन घरों के लिए उन्होंने न जाने कितने इंतजाम किए थे , सरंजाम जुटाए थे , वे सभी जैसे के तैसे पड़े रह गए l इन सारे रेत के घरों में उनमें से किसी का कोई मेरा - तेरा न रहा l वहीँ पास में कुछ दूर खड़े एक साधु बच्चों का यह सारा घटना प्रसंग देख रहे थे l वह सोचने लगे कि संसार के प्रौढ़ लोग भी क्या बच्चों की तरह रेत के घर - भवन - महल नहीं बनाते रहते ! इन बच्चों को तो फिर भी सूरज डूबने के साथ अपने घर की याद आ गई , परन्तु जिन्हें प्रौढ़ कहा जाता है , उनका तो जिंदगी की सांझ ढलने पर भी विवेक जाग्रत नहीं होता और ज्यादातर लोग अपने अहंकार और अपने स्वार्थ के साथ मेरा- तेरा कहते हुए संसार छोड़ देते हैं l इसलिए कहते हैं कि प्रौढ़ता का संबंध आयु से नहीं , विवेक से है l
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