पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी ने अपने एक लेख में अक्टूबर 1972 में लिखा था ---- ' आज सर्वत्र भय का साम्राज्य है l हर व्यक्ति बेतरह डरा हुआ है l अवांछनीय और अनुचित को जानते - मानते हुए भी उसे अस्वीकार करने का साहस नहीं होता l अपनी मौलिकता मानो मनुष्य ने खो ही दी है l अपने पास उसकी कोई समझ ही नहीं है l जो कुछ कहा , बताया और कराया जा रहा है , उसे ही पालतू जानवर की तरह मानने और करने को तैयार रहने वाली मनोभूमि एक प्रकार से पराधीनता के पाश में जकड़ी हुई ही है l ऐसा बंधित और बाधित व्यक्ति शिक्षित कैसे कहा जाए ? -------- पुरानी दुनिया अब टूट रही है l युद्धों से --- दांव - पेचों से --- अभाव - दारिद्र्य से ---- शोषण - उत्पीड़न से ---- छल - प्रपंच से आदमी आजिज आ गया है l सुविधा - साधनों की अभिवृद्धि के साथ -साथ दुर्बुद्धि और दुष्प्रवृतियों की बढ़ोत्तरी भी बेहिसाब हो रही है l जो चल रहा है , उसे चलने दिया जाये तो आज का समय कल शोषण , वीभत्स और नग्न रक्तचाप के रूप में सामने आ खड़ा होगा और मानवीय सभ्यता बेमौत मर जाएगी l उस स्थिति को बदले बिना कोई चारा नहीं है l नई दुनिया अगर न बनाई जा सकी तो इस बढ़ती हुई घुटन से मनुष्यता का दम घुट जायेगा l '
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