क्रोध एक ऐसा मनोविकार है जो बुद्धि , विवेक और भावना सबको नष्ट कर देता है l क्रोध का पहला प्रहार विवेक पर व दूसरा प्रहार होश पर होता है l इसलिए कठिन कार्यों , संकट के समय और अपमान होने पर धैर्य धारण करने की सलाह दी जाती है l क्रोध करने से शारीरिक व मानसिक ऊर्जा का क्षय होता है l जिस तरह जब पानी को गरम किया जाता है तो थोड़ी देर में वह गरम होकर उबलने लगता है और उबलने पर पानी भाप में बदलता जाता है , इसी तरह जब व्यक्ति क्रोध में गरम होकर उबलता है तो उस समय उसकी ऊर्जा सर्वाधिक मात्रा में व्यय होती है l इसलिए मनुष्य को सर्वप्रथम अपने क्रोध पर नियंत्रण रखना चाहिए ऐसा होने पर दुर्भावनाएं मन को घेर नहीं पाएंगी और व्यक्ति पूर्ण रूप से स्वस्थ रहेगा l
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