कर्म फल को समझाने वाली एक पौराणिक कथा है ---- एक बार महर्षि वसिष्ठ श्रीराम को उपदेश दे रहे थे l इस बीच वे लघुशंका हेतु गए l लघुशंका के दौरान वे जोर से हँसे l रामचंद्र जी ने सोचा इतने बड़े महर्षि लघुशंका के दौरान हँस रहे हैं ! क्या इन्हे इतना ज्ञान नहीं है कि इस समय कोई क्रिया नहीं करनी चाहिए l जब लौटकर आए तो श्रीराम ने पूछा --- " भगवन ! क्या बात थी आप हँसे क्यों ? ऐसे समय आपको हँसी आना किसी विशेष रहस्य का कारण है ? " महर्षि बोले ---- " मैं एक दृश्य देखकर हंस पड़ा l एक चींटा नीचे नदी के प्रवाह में बहा जा रहा था l वह चींटा नौ बार इंद्र पद पर रह चुका है , पर अपने भोग के कारण चींटे की योनि को प्राप्त हुआ है l " जब इंद्र पद प्राप्त करने वाले की यह स्थिति है तो मनुष्यों को होश में रहकर कर्म करना चाहिए l
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