पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ----- ' जाति -द्रोही विजातियों से अधिक भयंकर तथा दंडनीय होता है l ऐसे व्यक्ति अपने स्वार्थ के लिए शत्रुओं के प्रति तो बड़े सच्चे तथा वफादार रहते हैं लेकिन अपने देश व समाज के लिए नहीं रह पाते l जिस सच्चाई और भक्ति का प्रमाण वे विपक्षियों का हित साधन में देते हैं , उसका प्रमाण यदि वे देश , धर्म तथा समाज के हित में दें तो उनका अधिक सम्मान और अधिक लाभ हो सकता है लेकिन उन्हें तो शत्रुओं की चाटुकारी और अपनों को हानि पहुँचाने में ही सुख - संतोष अनुभव होता है l ऐसे ही व्यक्ति देश तथा धर्मद्रोही का अपनाम पाकर इतिहास के कलंकित पृष्ठों में लिखे जाया करते हैं l
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