पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ---- ' जब तक शक्ति-मंतों की भुजा में बल , वाणी में प्रभाव और विस्तार पर नियंत्रण रहता है , सभी उसे नमन करते हैं , उसके अत्याचार को वीरता , अनीति को चातुर्य और शोषण को आवश्यकता मानते रहते हैं l किन्तु ज्योंही उनकी ये विशेषताएं समय पाकर क्षीण हो जाती हैं त्योंही लोगों के मन और दृष्टिकोण बदल जाते हैं l उसके गुण नीचे पड़ जाते हैं और सारे दोष उभर आते हैं l ' आचार्य श्री लिखते हैं --- ' वास्तव में अधिकार पद बड़ा विडम्बनापूर्ण होता है l जब तक वह सक्षम और समर्थ है , लोग उसकी झूठी चाटुकारी किया करते हैं और जब वह असहाय और विवश होता है तो तुरंत आँखें ही नहीं फेर लेते बल्कि फिर न उठ सके इसके लिए दो धक्के और दे देते हैं l '
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