4 June 2021

WISDOM ------

 पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं  ---- '  अंत  में  सत्य  ही  जीतता  है   l   बल  नहीं  जीतता   और  न  आतंक  ही  अंत  तक   ठहरता  है   l   असत्य  कितना  ही  साधन  संपन्न    क्यों  न  हो   वह  सत्य  के  आगे  ठहर  नहीं  पाता   l     साधनहीन    होते  हुए  भी   सत्य  ,   सुसम्पन्न  असत्य   से  कहीं  अधिक  सामर्थ्यवान     होता  है   l   विजय   सत्य  की  ही  होती  है   l  '         एक  प्रेरणाप्रद  दृष्टांत  है   -------   काबुल  के  सम्राट  नमरूद     ने  ऐलान  कराया  कि      वही  ईश्वर  है  ,  उसी  की  पूजा  की  जाये   l  भयभीत  प्रजा  ने  उसकी  मूर्तियां  बनाई  और  पूजा  करने  लगी  l   एक  दिन  राज -ज्योतिष  ने   उसे   बताया   कि   इस  वर्ष  ऐसा  बालक  जन्म  लेगा  जो  उसके  ईश्वरत्व  को  चुनौती  देगा   l   सम्राट  को  यह  बात  अखरी   और  उसने   उस  वर्ष  जन्म  लेने  वाले  सब  बालकों  को   मार  डालने  की  आज्ञा  दे  दी   l   राज  कर्मचारी  बालकों  को  ढूंढ़ -ढूंढ़कर   मारने   लगे   l   नमरूद  की  मूर्तियाँ   गढ़ने  वाले   आजर   की  पत्नी  ने  भी  सुन्दर  पुत्र  को  जन्म  दिया  l   उसका  हृदय    बहुत  व्याकुल    हो  गया   और  बच्चे  की  रक्षा  के  लिए  वह  एक  पहाड़  की  गुफा  में  छिप  गई  और  वहीं   उसका   लालन -पालन   करने  लगी  l   बालक  का  नाम  था --इब्राहीम ,   अब  वह  बालक  पांच  वर्ष  का  हो  गया  l   एक  दिन  उसने  माता  से  पूछा  ---- " हम  लोग  जहाँ  रहते  हैं  ,  क्या  उससे  बड़ा  इस  दुनिया  में   और  कुछ  है   ?  "    माता  ने  बालक  को  संसार  के  बारे  में  सब  बताया  और  कहा  -- इस  सबका  निर्माता  एक  ईश्वर  है   l '  अब  बालक  ईश्वर  के  दर्शन  के  लिए  व्यग्र  रहने  लगा   और  एक  दिन  अवसर  पाकर   गुफा  से  बाहर  निकला  l   प्रकृति  के  निकट  संपर्क  में  आने   और  निरंतर  ईश्वर  चिंतन  से  उसे  यह  समझ  में  आया   कि   ईश्वर  वह  है  जो  न  जन्मे  और  न  मरे    l   ऐसे  ईश्वर  की  उपासना  का  वह  प्रचार  करने  लगा  l   नमरूद  को  पता  चला  कि   उसकी  सत्ता  को  चुनौती  देने  वाला  कोई  फ़क़ीर  पैदा  हो  गया  है  ,  तो  उसने  इब्राहीम   को  पकड़  बुलाया   और  अनेक  यंत्रणाएँ  दीं  l    जब  इब्राहीम   के  विचार  नहीं  बदले  ,  तो  उसे  जलती  हुई  आग  में  पटककर  मार  डालने    का  आदेश  हुआ   l     अग्नि  प्रकोप  से  बचने  में  सहायता  के  लिए  जब  देवता  उसके  पास  आये  ,  तो  उन्होंने  यह  कहकर  सहायता  अस्वीकार  कर  दी  कि   सत्य   की  निष्ठां  कष्ट  सहने  से  ही  परिपक्व  होती  है   l   आप  इतना  अनुग्रह  करें  कि   मेरा  आत्मबल  विचलित  न  हो    l   अंत  में  सत्य  ही  जीता  ,  नमरूद  का   अहंकार  गल   गया   l  इब्राहीम   की   ईश्वर  विवेचना   आज  भी  मनुष्यों  के  ह्रदय  में  स्थान  बनाये  हुए  है   l 

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