वर्तमान समय में श्रेष्ठ व्यक्तित्व संपन्न मनीषियों और विचारकों के अभाव के कारण समाज रुग्ण और जर्जर हो चुका है यदि वातावरण मूल्यहीनता रूपी प्रदूषण से ओत - प्रोत हो तो समाज में अनैतिक और स्वार्थी व्यक्तियों की भरमार होती है l आज स्वार्थ सर्वोपरि हो गया है और मूल्य , नीति , आदर्श व परम्पराएं बीते दिनों की बात बन गई हैं l ऐसे श्रीहीन समाज में अनीति , आतंक और अत्याचार पनपते हैं l समाज में शूरवीरों की संख्या घटने लगती है और लोगों में कायरता बढ़ने लगती है l इस जर्जर समाज को पुनर्जीवित करने के लिए समर्थ मार्गदर्शकों की आवश्यकता होती है l पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी का कहना है ----- " आज की परिस्थितियां बहुत बदल गईं हैं , सत्संग , उच्च कोटि के सत्यवादी , प्रखर एवं निस्पृह व्यक्तित्व के धनी बहुत ही कम देखने को मिलते हैं , उनके आचरण में वे गुण न उतर पाने के कारण कोई प्रभाव जनमानस पर पड़ता नहीं देखा जाता l इस स्थिति में सामान्य जनता के व्यक्तित्व को ऊँचा उठाने का एकमात्र उपाय , महापुरुषों के संस्मरण का स्वाध्याय ही माना जा सकता है l छोटे - छोटे संस्मरण पढ़ने में भी सहज होते हैं और मर्मस्थल को स्पर्श करते हुए जीवन की राह बदल देते हैं ' देखन में छोटे लगें , घाव करें गम्भीर l '
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