निस्पृह देशभक्त ---- राजा महेंद्र प्रताप ------ मुरसान रियासत के राजकुमार और हाथरस राज्य के दत्तक उत्तराधिकारी राजा महेंद्र प्रताप ऐसा वैभव और ऐसा राजत्व सुरक्षित रखने को तैयार नहीं थे जिसके लाभ से गुलामी को प्रश्रय देने को तैयार होना पड़े l उन्हें देशभक्ति के मूल्य पर संसार का कोई भी वैभव और कोई भी सुख - सुविधा स्वीकार नहीं थी l अन्य देशी राजाओं की भाँति उनकी शिक्षा - दीक्षा भी अंग्रेजी ढंग से इंग्लैंड में हुई किन्तु जैसे ही वे भारत वापस आए उन्होंने सारी वैदेशिकता झाड़ फेंकी और विशुद्ध भारतीयता में आ गए l भारतीय वेशभूषा , आचार - विचार , रहन - सहन , आहार आदि भारतीयता ही उनकी शोभा बन गई l 1906 में वे ' कलकत्ता कांग्रेस ' में आ गए और सबसे पहला काम यह किया कि अपने सारे विदेशी वस्त्र जला दिए और खादी धारण कर ली l इस म कार्य उनकी पत्नी भी सहयोग करने को तैयार न हुईं और उन्होंने एक तौलिया का त्याग ही बड़ी भारी तपस्या समझी l किन्तु राजा महेंद्र प्रताप ने उन पर जड़ता की छाया समझकर बुरा न माना और सोच लिया कि सत्य का दर्शन और भक्ति की भावना सबके भाग्य में नहीं होती l राजा महेंद्र प्रताप ऊंच - नीच तथा वर्णवाद की भावना के कट्टर विरोधी थे , उनका कहना था कि मनुष्य का सच्चा धर्म प्रेम है l उनके कोई संतान नहीं थी , उन्होंने वृंदावन की सीमा में ' प्रेम महाविद्यालय ' स्थापित किया और अपनी इस संतान का नामकरण संस्कार महामना मालवीय जी से कराया और अपनी संतान की तरह इसका पालन - पोषण किया l
No comments:
Post a Comment