एक क्रांतिकारी को स्वतंत्रता संग्राम के दिनों में फाँसी की सजा दे दी गई l उनकी विधवा पत्नी के अतिरिक्त घर में एक युवा कन्या और थी l पैसे की कमी , संरक्षक का अभाव एवं विपन्नता अवरोध के रूप में सामने खड़े थे l ऐसे में एक शिक्षित नवयुवक आगे आया और क्रांतिकारी की बेटी से विवाह हेतु हाथ आगे बढ़ा दिया l अधिकारियों ने धमकी दी कि अब तुम्हारे पीछे भी पुलिस पड़ेगी l क्यों झंझट में पड़ते हो ? युवक डर गया l घटना एक संपादक के संज्ञान में आई l उनने अधिकारियों से जाकर चर्चा की , उन्हें समझाया , यदि आप किसी के आंसू पोंछ नहीं सकते तो रुलाने का भी अधिकार नहीं है l पुलिस अधिकारी शर्मिंदा हुआ , उसने क्षमा मांगी l बाद में उसने और संपादक महोदय ने मिलकर विवाह संपन्न कराया , सारा व्यय का भार भी स्वयं उठाया l विवाह में कन्या के के पिता की जिम्मेदारी निभाने वाले संपादक सज्जन थे --- श्री गणेश शंकर विद्दार्थी , जिन्हे अमर हुतात्मा की बाद में संज्ञा मिली l
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