युगों - युगों से मनुष्य का स्वाभाव अनेक तरह की चिंताओं से ग्रस्त रहा है l चिंता एक ऐसा रोग है , जो कभी भी हमारे विचारों में घुन की तरह लग जाता है l एक विचारक का कहना है ---' यदि चलने के लिए तैयार खड़े जहाज में सोचने - विचारने की शक्ति होती , तो वह सागर की उत्ताल तरंगों को देखकर डर जाता कि ये तरंगे उसे निगल लेंगी और वह कभी बंदरगाह से बाहर नहीं निकलता लेकिन जलयान सोच नहीं सकता , इसलिए उसे कोई चिंता नहीं होती कि जल में उतरने के बाद उसका क्या होगा , वह तो केवल चलता है l " आचार्य श्री लिखते हैं ---- इसी तरह यदि हम संकटों व परेशानियों के बारे में सोचकर घबराएंगे तो विकास के मार्ग पर हमारा एक कदम भी आगे बढ़ना दूभर हो जायेगा l इसलिए यदि मन आशंकाओं और नकारात्मक कल्पनाओं से भर रहा हो तो अकेले में बैठकर उन्हें सोचना नहीं चाहिए , तुरंत अपने मन को किसी कार्य में लगाना चाहिए ' व्यस्त रहें , मस्त रहें l '
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