कहते हैं -- जो ' महाभारत ' में है वही इस धरती है l व्यक्ति अपने संस्कार के अनुरूप ही उससे सीखता है l महाभारत का प्रसंग है ---- दुर्योधन के गुरु द्रोणाचार्य से ऐसा कहने पर कि कौरव पक्ष के के अनेक वीर युद्ध में मारे गए लेकिन पांडव पक्ष का ऐसा कोई नुकसान नहीं हुआ , कहीं ये आपका अर्जुन के प्रति मोह तो नहीं ? तब गुरु द्रोणाचार्य ने चक्रव्यूह की रचना की , इस चक्रव्यूह में भगवान कृष्ण की बहन सुभद्रा और अर्जुन के पुत्र अभिमन्यु को सात महारथियों ने मिलकर मार डाला l आसुरी प्रवृति के लोग इसी तरह कभी जाति के आधार पर , कभी धर्म के आधार पर , कभी अपनी विकृत मानसिकता के कारण ऐसे ही कलियुगी चक्रव्यूह रचते हैं l विज्ञान के आविष्कारों ने और संवेदनहीन ज्ञान ने इन चक्रव्यूह का घेरा बहुत बड़ा कर दिया है और धनवानों के लालच व महत्वाकांक्षा ने इस घेरे को मजबूत कर दिया है l कलियुग में दुर्बुद्धि का प्रकोप होता है l पहले घातक हथियारों का निर्माण होता था असुरता के अंत के लिए लेकिन अब संसार पर अपना वर्चस्व कायम करने के लिए , लोगों का दिल जीतकर नहीं , उन्हें डरा - धमका कर अपने नियंत्रण में रखने के लिए घातक हथियार बनते हैं ----- फिर जब बन गए तो उनको बेचना भी जरुरी है ----- अब जब तक उनका प्रयोग नहीं होगा , तब तक और ज्यादा कैसे बिकेंगे ? लाभ कैसे होगा ? यह चक्रव्यूह महाभारत की तरह किसी एक दिन का युद्ध नहीं है l यह तो तब तक चलेगा जब तक लोगों के हृदय में संवेदना नहीं जागेगी l जब मनुष्य में विवेक का जागरण होगा , सद्बुद्धि आएगी तभी यह चक्रव्यूह टूटेगा l शक्ति का सदुपयोग नहीं होगा तो मानवता को नष्ट होने में देर नहीं लगेगी l
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