एक गाड़ीवान हनुमान जी का बड़ा भक्त था l नित्य उनके मंदिर में दर्शन को जाता था और वहां बैठकर हनुमान चालीसा का पाठ करता था , ताकि हनुमान जी अपने कानों से सुन लें l एक दिन गाड़ीवान अपनी गाड़ी लेकर कहीं दूर गाँव जा रहा था l वर्षा के दिन थे l सड़क जगह - जगह से टूटी हुई थी , गड्ढ़ों में पानी भरा था l रास्ते में एक जगह भारी कीचड़ भरा हुआ था , पहिये उसमें फँस गए l बैल उसे खींच नहीं पा रहे थे l वह स्वयं कीचड़ में उतारकर गाड़ी खींचना नहीं चाहता था l फिर गाड़ी बाहर कैसे निकले l गाड़ीवान उसी में बैठकर जोर - जोर से हनुमान चालीसा पढ़ने लगा l उसका अभिप्राय था कि हनुमान जी आएं और उसकी गाड़ी बाहर निकालें l पाठ करते - करते बहुत देर हो गई , पर हनुमान जी नहीं आए l वह झल्लाने लगा और बुरा बोलने लगा l एक किसान पास के खेत में हल जोत रहा था l उसने यह तमाशा देखा और बोला ---- " मूर्ख ! हनुमान जी तो अनदेखे पर्वत को उखाड़ लाए थे l तू उनका भक्त बनता है तो कीचड़ में उतारकर पहिये को जोर क्यों नहीं लगाता , ताकि धकेले जाने पर वे आगे बढ़ें l हनुमान जी ने तो समुद्र पार कर लिया , तुझसे कीचड़ में नहीं उतरा जाता l " अंध भक्त को चेत हुआ l उसने अपनी गलती समझी और कीचड़ में उतरा l पहिये को जोर लगाया , गाड़ी आगे चली और कीचड़ के पार हो गई l जो काम अपने पुरुषार्थ से हो सकता है , उसके लिए आलसी बनकर देवता को क्यों पुकारा जाये ?
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