पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ----- " मनुष्य शरीर होने के नाते जीवन में गलतियों का होना स्वाभाविक है , पर उन गलतियों से सीख प्राप्त करना महत्वपूर्ण घटना है l सामान्य मनुष्य एक गलती करता है , उससे कुछ सीखता नहीं है , और आदतन वही गलतियाँ बार - बार करते चला जाता है l आचार्य श्री लिखते हैं ----- " यदि लोग अपने दोषों का चिंतन किया करें , उन्हें स्वीकार कर लिया करें और उनका दंड भी उसी साहस के साथ भुगत लिया करें तो व्यक्ति की आत्मा में इतना बल आ जाता है कि कोई और साधन - सम्पन्नता न होने पर भी वह संतुष्ट जीवन जी सकता है l " आज के समय में बढ़ते हुए तनाव , सिरदर्द का एक बड़ा कारण यह भी है कि लोग अपने दोषों को छिपाते हैं l अच्छाई में गजब का आकर्षण होता है , इस कारण बुरे से बुरा व्यक्ति भी स्वयं को समाज में अच्छा व सदाचारी दिखाना चाहता है , अपने दोषों को , अपने द्वारा किए गए गलत कार्यों को समाज से छुपाना चाहता है l कुत्सित मानसिकता के व्यक्ति लोगों की ऐसी कमजोरियों का पता लगाकर उनसे अपना स्वार्थ सिद्ध करते हैं , उनको ब्लैकमेल करते हैं l यदि मनुष्य के जीवन में अध्यात्म विकसित हो जाए तो वह अपने जीवन को खुली किताब रखे , अपने दोषों को साहस के साथ स्वीकार करे और दूर करने का निरंतर प्रयास करें l आचार्य श्री लिखते हैं ---- ' जो दोषों को छिपाते हैं वे गिरते चले जाते हैं पर जो बुराइयों को स्वीकार करता है , उसकी आत्महीनता तिरोहित हो जाती है l भूल को स्वीकार करने से और उसका प्रायश्चित करने से आत्मा की जटिल ग्रंथियां मुक्त होती जाती हैं , ऐसे साहसी व्यक्ति ही सांसारिक सुख - वैभवों का भी लाभ पाते हैं l "
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