अणुबम कितना शक्तिशाली होता है कि उसके दुष्परिणाम भावी पीढ़ियों को भी दशकों तक झेलने पड़ते हैं l विनाश तो पल भर में हो जाता है , पुनर्निर्माण की प्रक्रिया दीर्घकाल तक चलती है l कहते हैं मनुष्य का मन परमाणु बम से भी ज्यादा शक्तिशाली है l मन से उठने वाली तरंगे , विचार वायुमंडल में रहते हैं l युद्ध , दंगे बम विस्फोट जैसी घटनाओं के बाद भौतिक रूप से पुनर्निर्माण के कार्य तो किए जाते हैं लेकिन इन युद्धों , दंगे , जाति , धर्म , रंग भेद , ऊंच - नीच आदि के कारण कितने बच्चे - बूढ़े निर्दोष व्यक्ति बेरहमी से मारे गए , उनके मन , आत्मा से निकलने वाली कराह , चीत्कार जो अणु विस्फोट से भी ज्यादा शक्तिशाली हैं वायुमंडल में भर गईं l वे देश , वे क्षेत्र जहाँ उत्पीड़न , लूटपाट ,भेदभाव , हत्याएं आदि हृदयविदारक घटनाएं बहुत हुई हैं , यदि निष्पक्ष रूप से वहां सर्वेक्षण किया जाये तो यह सत्य सामने आएगा कि आज भी उन क्षेत्रों में अपराध किसी न किसी रूप में ज्यादा होते हैं , वातावरण बोझिल है , लोग संपन्न होने के बावजूद भी तनाव , मानसिक बीमारियों आदि से पीड़ित हैं l जो क्षेत्र डाकुओं की समस्या से ग्रस्त थे , वहां लोगों में षड्यंत्र , साजिश , हक छीनना आदि आपराधिक मनोवृति होगी l जो क्षेत्र दंगा रहित रहे , पवित्र धार्मिक स्थल हैं वहां शांति सद्भाव देखने को मिलेगा l जिन स्थानों पर एक्सीडेंट बहुत होते हैं , वहीँ पर अक्सर होते हैं l मनुष्य के भीतर देवता और असुर दोनों हैं , उसकी मानसिक स्थिति के अनुसार वातावरण में विद्यमान तरंगे उसके भीतर की प्रवृति को जाग्रत कर देती हैं l इसलिए वातावरण के परिष्कार के प्रयास बड़े पैमाने पर होने चाहियें l पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी ने वातावरण के परिष्कार के लिए यज्ञ , हवन करने के लिए कहा , इसके अतिरिक्त यदि जो वास्तव में पीड़ित हैं उनके पीड़ा निवारण के कार्य यदि बड़े स्तर पर हों , खुशियां छीनने का नहीं , खुशियाँ बाँटने का प्रयास हो वातावरण परिष्कृत होगा , लोगों का मन भी शांत रहेगा l
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