पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ----- अहंकारी के लिए दूसरे क्या कहते हैं यह मूल्यवान है l प्रशंसा झूठी भी हो तो अच्छी लगती है l जो आदमी अहंकार के साथ जीता है , वह हमेशा चिंतित रहता है , उसे हमेशा परेशानी बनी रहती है कि कौन निंदा कर रहा है , कौन प्रशंसा कर रहा है l उसका व्यक्तित्व दूसरों पर निर्भर है l लेकिन जो अहंकार शून्य हैं , वे व्यक्ति हर स्थिति में शिकायत के स्थान पर समाधान निकाल लेता है l कवि पाब्लो नरूदा अपनी जीवनी जीवनी में लिखते हैं---- 'आलोचना का सामना सामना मुझे अपनी पहली ही कविता के लिए करना पड़ा , वह भी अपने माता -पिता पिता के द्वारा l पाब्लो कहते हैं कि यह कविता उन्होंने अपनी सौतेली माँ के लिए लिखी l कविता उन्होंने जब अपने माता -पिता को दिखाई तो उन्होंने छूटते ही कहा कहा --- " कहाँ से नक़ल मारी ? " पाब्लो ने अपनी इस आलोचना को सीख की तरह लिया l उनके दिमाग में यह बात बैठ गई कि ' बस काम करते जाओ , आलोचनाएँ तो होती रहेंगी l इनमें से ज्यादातर कूड़ेदान में फेंकने वाली होंगी l इनसे क्या घबराना ? '
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