लघु -कथा ----- 1. एक तपस्वी थे l वन में रहकर घोर तप करने लगे l इंद्र देव घबराए , इतना कठोर तप करने वाला इन्द्रासन का हक़दार बन सकता है l ऐसा उपाय करना चाहिए कि तपस्वी का व्रत खंडित हो l इसके लिए इंद्र ने अप्सराएँ भेजीं , डराने के लिए राक्षस भेजे , पर तपस्वी ज्यों के त्यों रहे , जरा भी डगमगाए नहीं l अब इंद्र ने दूसरी तरकीब अपनाई , वे परी का रूप धारण कर पकवान , मिष्ठान लेकर पहुँचने लगे l तपस्वी ने पहले तो उपेक्षा दिखाई , फिर उनकी जीभ चटोरी हो गई l रोज उस भक्त की प्रतीक्षा करने लगे l एक दिन वन परी अपने घर छप्पन भोग पकवान खिलाने का निमंत्रण देने आई l उसे खाकर तपस्वी बहुत प्रसन्न हुए l परी ने कहा ---- " आप मेरे घर ही निवास करें l इससे बढ़कर भोजन कराया करुँगी l " तपस्वी सहमत हो गए l रोज -रोज पकवान खाते थे l परी पर मुग्ध हो गए l गंधर्व विवाह करने पर सहमत हो गए l तप भ्रष्ट हुआ , इंद्र बहुत प्रसन्न हुए , बोले ----- " अन्य रस छोड़े जा सकते हैं , पर स्वाद बड़े बड़ों की साधना चट कर जाता है l "
2. एक सेठ जी खाँसी से बहुत परेशान थे l वैद्य जी के पास गए , तो वैद्य जी ने परहेज करने को कहा l सेठ जी ने कहा ---- " आप दवा चाहे जितनी कड़वी दे दें , पर मैं परहेज नहीं कर सकता l " वैद्य जी ने कहा ---- " फिर आप परहेज भी मत कीजिए और दवा भी मत लीजिए , क्योंकि खाँसी से तीन लाभ आपको होंगे ही l एक तो यह कि रात भर आप खाँसते रहोगे , तो घर में चोर नहीं आयेंगे l दूसरा आपको कुत्ते नहीं काटेंगे , क्योंकि कमजोरी के कारण आप बिना लाठी के नहीं चल सकेंगे l तीसरा लाभ यह है कि बुढ़ापा नहीं आएगा , क्योंकि खाँसी के कारण जीवन जल्दी समाप्त हो जायेगा l " यह सुनकर सेठ जी की समझ में बात आ गई और उन्होंने खाने - पीने का नियंत्रण कर अपने को स्वस्थ कर लिया l हकीम लुकमान कहते थे कि भोजन का असंयम कर मनुष्य अपनी जीभ से अपनी कब्र खोदता है l
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