14 July 2022

WISDOM -----

    आचार्य  श्री  लिखते  हैं ----- ' जीवन  बड़ी  अमूल्य  वास्तु  है  l   इसका  एक  क्षण  भी   करोड़ों  स्वर्ण  मुद्राएँ   देने  पर  भी  नहीं  मिल  सकता  l  ऐसा  जीवन  निरर्थक  नष्ट  हो  जाए  ,  तो  इससे  बड़ी  हानि   क्या  हो  सकती  है  ? '------     मगध  में  भयंकर  अकाल  पड़ा  l  भीषण  गर्मी  से  धरती  जलने  लगी   और  क्षुधा  के  कारण  प्रजा  त्राहि -त्राहि  करने  लगी   l  सम्राट  चन्द्रगुप्त  ने    अपने  राजकोष  को   प्रजा  की  सहायता  के  लिए  खोल  दिया   और  साथ  ही  सबको   स्थान -स्थान  पर  यज्ञ  करने  का  निर्देश  दिया  ,  ताकि  वरुण  देव  उससे  पुष्ट  होकर   वृष्टि  करने  में  सक्षम  हों   l  पाटलिपुत्र  में  भी   यज्ञ  का  आयोजन  किया  गया  ,  जिसमें  सात  दिन  तक   निराहार  व्रत  का  पालन  करते  हुए   सम्राट  ने  मुख्य  यजमान  की  भूमिका  निभाई  l   इसके  बाद  सम्राट  और   साम्राज्ञी  ने   बंजर  भूमि  पर  हल  चलाना  आरम्भ  किया   l  हल  के  जमीन  पर  लगते  ही   वहां  एक  आकृति  प्रकट  हुई   और  सम्राट  को   संबोधित  करते  हुए  बोली  ---- "  लोग  श्रम  की  उपेक्षा  कर  रहे  हैं  ,  इसीलिए  यह  दुर्भिक्ष  उपस्थित  हुआ  है  l  यदि  प्रजा  पुन:  श्रम  करना   आरम्भ  कर  दे  ,  तो  खुशहाली  के  दिन  पुन:  वापस   आ  जायेंगे  l  "  यह  द्रश्य  देखकर   प्रजा  को   श्रम  का  महत्त्व  ज्ञात  हुआ   और  सभी  श्रम  करने  में  जुट  गए  l  थोड़े  परिश्रम  से  नाहर  खोद  ली  गई   और  बंजर  भूमि  पर  पानी  की  धारा  बह  निकली  l  श्रम  के  देवता  ने  सबको  पुन:  समृद्ध  कर  दिया  l  

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