14 July 2022

WISDOM ------

    पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य  जी  लिखते  हैं---- ' बुरे  दिनों  की  चपेट  में  आने  से  पहले   आदमी  अहंकारी  हो   चुका    होता  है   l  उद्धत  मनुष्यों  की  दुर्मति   ही  उनकी  दुर्गति  कराती  है   l  '      पुराण  की  एक  कथा  है -------  राजा  नहुष  को  पुण्य  कर्मों  के  बदले  इन्द्रासन  प्राप्त  हुआ   l  ऐश्वर्य  और  सत्ता  का  मद  जिन्हें  न  आवे  ,  ऐसे  कोई  विरले  ही  होते  हैं    l  नहुष  पर  भी  सत्ता  का  नशा  चढ़  गया  ,  उनकी  द्रष्टि  रूपवती  इन्द्राणी  पर  जा  पड़ी   और  वो  उन्हें  अपने  अंत:पुर  में  लाने  का  विचार  करने  लगे   l  ऐसा  प्रस्ताव  उन्होंने  इन्द्राणी  के  पास  भेजा  l  नहुष  की  मंशा  जानकर  उन्हें  बहुत  दुःख  हुआ   l  राजाज्ञा  के  विरुद्ध  खड़े  होने  का  साहस  उन्होंने  अपने  में  नहीं  पाया  ,  इसलिए  उन्होंने  चतुरता  से  काम  लिया   l  इन्द्राणी  ने  नहुष  के  पास  संदेश  भिजवाया  कि  यदि  वे  सप्त ऋषियों  को  पालकी  में  जुतवा कर   , उस   पालकी  में  बैठकर  उनके  पास   आएं    तो  ही  वे  उनका  प्रस्ताव  स्वीकार  करेंगी   l    सत्ता  और  वैभव  के  मद  में  नहुष  की  बुद्धि  भ्रष्ट  हो  चुकी  थी  l  आतुर  नहुष  ने   ऋषि  पकड़  बुलाए ,  उन्हें  पालकी  में  जोता   और  उसमे  चढ़कर  बैठ  गया  l  उसे  इन्द्राणी  के  पास  पहुँचने  की  बहुत  जल्दी  थी   इसलिए  वह  ऋषियों  पर  जल्दी  चलने  का  दबाव  बनाने  लगा  l    ऋषि  बेचारे  दुबले -पतले  !  इतनी  दूर  तक  इतना  भार  ढो  कर   तेज  चलने  में  समर्थ  न  हो  सके  l  नहुष  उन  पर  लगातार  क्रोध  कर  रहा  था -- 'जल्दी  चलो , जल्दी  चलो  '   l  अपमान  और  उत्पीड़न  से  क्षुब्ध  होकर   एक  ऋषि  ने  शाप  दे  दिया  --- " दुष्ट  !  तू  स्वर्ग  से  पतित  हो  कर   पुन:  धरती  पर  जा  गिर   l  "  शाप  सार्थक  हुआ   , नहुष  स्वर्ग  से  पतित  होकर   धरती  पर   दीन -हीन   की  तरह  विचरण  करने  लगे  l   इन्द्राणी  की  युक्ति  सफल  हुई ,  सज्जनों  को  सताकर   कोई  भी  नष्ट  हो  सकता  है  l  

No comments:

Post a Comment