पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी ने अपनी लेखनी से संसार को जीवन जीने की कला सिखाई l छोटे - छोटे प्रसंग में बहुत गहरी बात छुपी है ------- 1. " नन्ही सी चिनगारी ! तुम भला मेरा क्या बिगाड़ सकती हो , देखती नहीं , मेरा आकार ही तुमसे हजार गुना बड़ा है , अभी तुम्हारे ऊपर गिर पडूँ तो तुम्हारे अस्तित्व का पता भी न लगे l " तिनकों का ढेर अहंकार पूर्वक बोला l चिनगारी बोली कुछ नहीं , चुपचाप ढेर के समीप जा पहुंची l तिनके उसकी आंच में भस्मसात होने लगे l अग्नि की शक्ति ज्यों -ज्यों बढ़ी , तिनके जलकर नष्ट होते गए , देखते -देखते भीषण रूप से आग लग गई और सारा ढेर राख में परिवर्तित हो गया l यह द्रश्य देख रहे आचार्य ने अपने शिष्यों को बताया ---- " बालकों ! जैसे आग की एक चिनगारी ने अपनी प्रखर शक्ति से तिनकों का ढेर खाक कर दिया l वैसे ही तेजस्वी और क्रियाशील एक व्यक्ति ही सैकड़ों बुरे लोगों से संघर्ष में विजयी हो जाता है l "
2. " बार -बार रंग बदलने की अपनी पटुता का प्रदर्शन करते हुए गिरगिट ने कछुए से कहा --- " महाशय ! देखा मैं संसार का कितना योग्य व्यक्ति हूँ l " कछुए ने धीरे से कहा ---- " महाशय ! दूसरों को धोखा देने की इस योग्यता से तो तुम अयोग्य ही बने रहते तो अच्छा था l कम -से -कम लोग भ्रम में तो न पड़ते l "
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