पं . श्रीराम शर्मा आचार्य जी , महापुरुषों के अविस्मरणीय जीवन प्रसंग ' में लिखते हैं ----- 'पराधीनता मनुष्य के लिए बहुत बड़ा अभिशाप है , वह चाहे व्यक्तिगत हो या राष्ट्रीय l उससे मनुष्य के चरित्र का पतन हो जाता है और तरह -तरह के दोष उत्पन्न हो जाते है l इसलिए कवियों ने पराधीनता को एक ऐसी ' पिशाचनी ' की उपमा दी है जो मनुष्य के ज्ञान , मान , प्राण सबका अपहरण कर लेती है l दूसरे को पराधीन बनाना संसार में सबसे बड़ा अन्याय और दुष्कर्म है l भगवान ने संसार में अनेक प्रकार के छोटे -बड़े , निर्बल -सबल , मुरका -चतुर प्राणी बनाये हैं l ईश्वरीय नियम तो यह है कि जो अपने से छोटा , कमजोर , नासमझ हो उसको आगे बढ़ने में , उन्नति करने में सहायता दी जाये , प्रगति के क्षेत्र में उसका मार्गदर्शन किया जाये पर इसके विपरीत जो कमजोर को अपना भक्ष्य समझते हैं , छल -बल से उनके स्वत्व का अपहरण करने को ही अपनी विशेषता समझते हैं , उन्हें कम -से -कम ' मानव ' पद का अधिकारी तो नहीं कह सकते l इनकी गणना तो उन क्रूर , हिंसक पशुओं में की जा सकती है , जिनका स्वभाव ही खूंखार बनाया गया है और जो सब के लिए भय का कारण होते हैं l '
No comments:
Post a Comment