गुलाम बनाना एक मानसिकता है l फिर चाहे एक राष्ट्र दूसरे राष्ट्र को गुलाम बनाए या परिवार या हर छोटी बड़ी संस्था में ऐसे लोग लोग होते हैं जो चाहते हैं कि सब लोग उनके हिसाब से चलें l उनके अनुसार न चलो तो चैन से जीने न देंगे l एक राष्ट्र तो संघर्ष कर के आजाद हो भी जाता है लेकिन ये जो व्यक्तियों में गुलाम बनाने की प्रवृति है उससे आजादी तभी हो सकती है जब विचारों में परिवर्तन हो , चेतना का परिष्कार हो l परिवारों में देखें तो माता -पिता अपने बच्चे का सुखद भविष्य अवश्य चाहते हैं लेकिन अपनी इच्छाओं के लेकर , समाज में अपने स्टेट्स को लेकर इतने कठोर हो जाते हैं कि उनकी इच्छानुसार बच्चे को डॉक्टर , इंजीनियर बनना ही है फिर चाहे उसका मन न हो l इसका परिणाम हमें समाज में देखने को मिलता l युवाओं में आत्महत्या और नशे की प्रवृति बढ़ रही है l महिलाओं की आजादी एक दिखावा है l पुरुष ने महिलाओं को प्रदर्शन की वस्तु बना दिया है , अंग प्रदर्शन की तो जैसे बाढ़ आ गई है l पुरुष अपने स्वार्थ के लिए अपनी ही भारतीय संस्कृति को मिटाने को आतुर हैं l महिलाएं अपनी महत्वाकांक्षा के कारण किसी पद पर पहुँच भी जाती हैं तो वे स्वयं जानती हैं कि कितने पापड़ बेलने पड़े हैं l फिर अधिकांश जगह वे केवल हस्ताक्षर करने के लिए हैं , उनके विचार की कोई अहमियत नहीं है l घरेलु हिंसा , उत्पीड़न की क्या कहें वो तो जग जाहिर है l यह गुलामी तभी समाप्त होगी जब लोगों की चेतना विकसित होगी , उनमे आत्मविश्वास होगा , आवश्यकताएं सीमित होंगी l एक नया समाज हो ----- ' जियो और जीने दो l '
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