आज की सबसे बड़ी विडंबना यह है कि मनुष्य के पास जो कुछ है वह उससे खुश नहीं है , संतुष्ट नहीं है l इससे भी बड़ी बात ये है कि जो आसुरी प्रवृत्ति के हैं वे तो अपने पड़ोसी, रिश्ते -नाते --- किसी की ख़ुशी को सहन नहीं कर सकते l उनका हर संभव प्रयास यही रहता है कि कैसे किसी की ख़ुशी को छीना जाये , उनको दुखी देखकर ही उनकी आत्मा को संतुष्टि मिलती है l कलियुग में दुर्बुद्धि के कारण ऐसे लोगों की संख्या अधिक होने के कारण ही लोगों के जीवन में तनाव है , सुख -चैन की नींद नहीं आती l पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ---- ' आज मनुष्य भौतिकवादी बनकर नास्तिक बन गया है l अपने लाभ से अधिक उसे इस बात की चिंता है कि पड़ोसी की हानि कैसे हो ? ' एक कथा है -------- एक व्यक्ति ने भगवान शिव की बहुत पूजा -प्रार्थना की l शिवजी ने प्रसन्न होकर दर्शन देकर कहा ---- " मांग , क्या मांगता है ? " मन की गहराई में जिसकी जैसी सोच होती है , उसके मुँह से वही निकलता है l उसने कहा --- ' भगवान ! पड़ोसी हमसे दूने रहें l ' भगवान तो भोलेनाथ हैं , उनने कहा ---' तथास्तु l ' और अंतर्धान हो गए l वह व्यक्ति मन -ही -मन खूब खुश हुआ l घर पहुंचा l पूजा -पाठ से , कर्मकांड से ईर्ष्या -द्वेष गया नहीं , वह बोला --- 'भगवान ! मेरा एक हाथ टूट जाए l " पड़ोसियों के दोनों हाथ टूट गए l फिर बोला --- " भगवान ! मेरी एक आँख फूट जाए l " पड़ोसियों की दोनों आँख फूट गई l फिर भी उसे शांति नहीं मिली l कहने लगा --- 'भगवान ! मेरा एक पैर टूट जाए l " पड़ोसियों के दोनों पैर टूट गए l स्वयं काना होकर लंगड़ाते हुए पड़ोसियों को देखने गया , तब कहीं उसके मन को तसल्ली हुई l आज मनुष्य पर नकारात्मकता हावी है , उसके सोचने का ढंग बदल गया इसलिए स्वयं भी दुखी है तथा औरों को भी दुखी करने का प्रयास करता है l
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