पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ---- " दुनिया में बुरे लोग हैं , ठीक है , पर यदि हम अपनी मनोभूमि को सहनशील , उदार और धैर्यवान बना लें तो अपनी जीवन यात्रा आनंदपूर्वक कर सकते हैं l जो उपलब्ध है उसे कम या घटिया मानकर अनेक लोग दुःखी रहते हैं l यदि हम इन लालसाओं पर नियंत्रण कर लें , अपना स्वाभाव संतोषी बना लें तो अपनी परिस्थितियों में शांति पूर्वक रह सकते हैं l " आचार्य श्री आगे लिखते हैं ---- ' अपने से अधिक सुखी , अधिक साधन संपन्न , अधिक ऊँची परिस्थिति के लोगों के साथ अपनी तुलना की जाए तो प्रतीत होगा कि सारा अभाव और दरिद्रता हमारे हिस्से में आई है ' परन्तु यदि उन असंख्य दीन -हीन परेशान लोगों के साथ अपनी तुलना करें तो अपने सौभाग्य की सराहना करने को जी चाहेगा l ऐसी दशा में यह स्पष्ट है की अभाव या दरिद्रता कोई मुख्य समस्या नहीं है , समस्या केवल इतनी है कि हम अपनी तुलना अपने से नीची परिस्थिति परिस्थिति के लोगों से करते हैं या ऊँची परिस्थिति के लोगों से l ' द्रष्टिकोण में परिवर्तन से हम बेवजह के तनाव से बच सकते हैं l
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