अत्याचार , अन्याय , लोगों को उत्पीड़ित करना --यह सब अहंकारी के लक्षण हैं , ऐसा कर के उसके अहंकार को पोषण मिलता है l इसे जब तक सहन करेंगे यह बढ़ता ही जायेगा l अत्याचारी के पास धन , सत्ता आदि का बल होता है , इसलिए विवेक और आत्मविश्वास से ही उसका मुकाबला किया जा सकता है l पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं --- ' हम में 'न ' कहने की हिम्मत होनी चाहिए l गलत का समर्थन नहीं करेंगे , उसमें सहयोग नहीं देंगे l जिसमें इतना भी साहस नहीं है उसे सच्चे अर्थों में मनुष्य नहीं माना जा सकता l चाहे कैसी भी परिस्थिति हो जूझने का साहस होना चाहिए l ------ एक राक्षस था , उसने एक आदमी को पकड़ा l उसने उसको खाया नहीं , डराया भर और बोला ---- ' मेरी मर्जी के कामों में निरंतर लगा रह , यदि ढील की तो खा जाऊँगा l वह आदमी जब तक बस चला , तब तक काम करता रहा l जब थककर चूर -चूर हो गया और काम उसकी सामर्थ्य से बाहर हो गया तो उसने सोचा कि तिल -तिलकर मरने से तो एक दिन पूरी तरह मरना अच्छा है l उसने राक्षस से कह दिया -- " जो मरजी हो सो कर , इस तरह मैं काम करते नहीं रह सकता l " राक्षस ने सोचा कि काम का आदमी है l थोडा -थोडा काम दिन भर करता रहे तो क्या बुरा है ? एक दिन खा जाने पर तो उस लाभ से हाथ धोना पड़ेगा जो उसके द्वारा मिलता है l राक्षस ने समझौता कर लिया , थोड़ा -थोड़ा काम करते रहने की बात मान ली
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