एक कथा है ---- विधाता ने मनुष्य बनाया और उसे धरती पर भेजने लगे तो भेजते हुए बोले ---" पुत्र ! तू मानव जीवन का उपयोग आत्म कल्याण के लिए करना ताकि मृत्यु आने पर पछताना न पड़े l " मनुष्य ने कहा -- " जी प्रभु ! पर आप मृत्यु आने से पूर्व चेतावनी जरुर दे देना , ताकि मैं समय रहते संभल सकूँ l " विधाता ने हामी भरी l पृथ्वी पर आते ही मनुष्य अपने पथ से भटक गया और मात्र इन्द्रिय सुखों में रस लेने लगा l जीवन पूरा हुआ और मृत्यु के बाद वह कर्मों का लेखा -जोखा के लिए विधाता के समक्ष उपस्थित हुआ l उसने विधाता से कहा --- "आपने वचन दिया था कि आप मृत्यु आने पर चेतावनी देंगे , पर मुझे तो कोई ऐसा संदेश नहीं मिला l " विधाता बोले --- " तेरी आँखों से दीखना , कानों से सुनना कम पड़ने लगा , हाथ -पैर कम काम करने लगे पर तब भी तू उन्हें भूलकर सुखों में रस लेता रहा तो इसमें किसका दोष है l यही तो तेरे लिए चेतावनी थी l सत्य है कि परमात्मा मनुष्य को हर घड़ी चेताते हैं , पर वह ही अपना बहुमूल्य जीवन व्यर्थ गँवा देता है l
संसार में ऐसे अनेक व्यक्ति हुए जिन्होंने मृत्यु को स्वीकार किया --- जर्मनी के प्रसिद्ध नाटककार गेटे अपने लक्ष्य में आजीवन पूरे मन और निष्ठां से लगे रहे l जब उनकी मृत्यु का समय आया तब भी उन्हें नाटक ही दीख रहा था l अंतिम साँस छोड़ते हुए उन्होंने उपस्थित लोगों से कहा --- " लो , अब पर्दा गिरता है , एक मजेदार नाटक का अंत होता है l "
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