लघु कथा ---- कुछ समय पूर्व की बात है , वर्षा ऋतु थी घनघोर पानी बरस रहा था , दूर -दूर तक जल ही जल नजर आता था l ऊपर उड़ती दो बतखों की द्रष्टि एक कछुए पर पड़ी , जो एक पेड़ की टहनी मुंह से पकड़े स्वयं को बचाने में लगा था l बतखों को कछुए पर दया आ गई और उसके पास जा कर बोलीं --- " आओ कछुए भाई , तुम टहनी पकड़े रहो और हम तुम्हे उड़ाकर सूखी जमीन तक पहुंचा देते हैं l बस , किसी भी स्थिति में अपना मुंह न खोलना l " कछुए ने बिना सीख को समझे हाँ कर दी l अब कछुआ टहनी को मुंह से पकड़े हुए था और दोनों बतखों ने उसे दोनों सिरे से पकड़ रखा था और आसमान में उड़ते हुए जा रहे थे l नीचे जमीन पर खड़े कुछ बच्चों ने यह अचरज भरा द्रश्य देखा और कछुए की ओर इशारा कर के हँसने लगे l बच्चों को अपनी पर हँसते देख कछुआ क्रोध से भर उठा और पलटकर चिल्लाने लगा l मुंह खोलते ही टहनी पर उसकी पकड़ ढीली हो गई और कछुआ जमीन पर आ गिरा l इस कथा से यही शिक्षा मिलती है कि अविवेक के कारण व्यक्ति असमय मुँह खोलता है जिसका परिणाम विनाशकारी होता है l कभी मौन रहकर भी समस्या का निराकरण संभव है l
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