वस्तुओं के प्रति आकर्षण का , अतृप्त इच्छाओं का नाम तृष्णा है l तृष्णा प्राय: अपनी स्थिति से अधिक ऊँची सामर्थ्य वाली वस्तुओं के लिए हुआ करती है l पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं --- " वासना और तृष्णा की खाई इतनी चौड़ी और गहरी है कि उसे पाटने में कुबेर की सम्पदा और इंद्र की सामर्थ्य भी कम पड़ती है l तृष्णा कभी तृप्त नहीं होतीं l उन्हें व्रत , संकल्प और प्रतिरोध की छड़ी से ही काबू में लाया जा सकता है l " एक कथा है ------ एक राजा ने एक बकरी पाली और प्रजाजनों की परीक्षा लेने का निर्णय किया l यह घोषणा की गई कि जो इस बकरी को तृप्त कर देगा उसे सहस्त्र स्वर्ण मुद्राएँ उपहार में मिलेंगी l परीक्षा की अवधि पंद्रह दिन रखी गई और बकरी घर ले जाने की छूट दे दी l जो ले जाते वे पंद्रह दिन तक उसका पेट भली प्रकार भर देते l इतने पर भी जब वह दरबार में पहुँचती तो अपनी आदत के अनुरूप वहां रखे हुए हरे चारे में मुंह मारती l प्रयत्न असफल चला जाता l इस प्रकार कितनों ने ही प्रयत्न किया , पर वे सभी निराश होकर लौट गए l एक बुद्धिमान उस बकरी को ले गया , वह पीछे छुपकर बकरी को चारा डाल देता , उसका पेट भर देता लेकिन जब वह सामने से आता , उसके हाथ में चारा होता तब वह बकरी की छड़ी से अच्छी खबर लेता l उसे देखते ही बकरी खाना भूल जाती और मुंह फेर लेती l यह नया अभ्यास जब पक्का हो गया तो वह बकरी को लेकर दरबार में पहुंचा l छड़ी हाथ में थी l उसके सामने हरा चारा रखा गया तो छड़ी को ऊँची उठाते ही बकरी ने मुंह फेर लिया , राजा समझ गया कि वह पूर्ण तृप्त हो गई और उस बुद्धिमान को इनाम मिल गया l इस रहस्य का उद्घाटन करते हुए राजपुरोहित ने बताया कि तृष्णायें बकरी के सद्रश हैं l वे कभी तृप्त नहीं होतीं l उन्हें व्रत , संकल्प और प्रतिरोध की छड़ी से ही काबू में लाया जा सकता है l
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