पं . श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं --- ' सामान्य जन प्रेरणा तभी लेते हैं , जब आदर्शों की चर्चा करने वाले , नीतिवेत्ता , नियम बनाने वाले स्वयं भी उनका पालन करें " आज संसार में एक -से -बढ़कर -एक उपदेश देने वाले , प्रवचन करने वाले हैं , जिन्हें सुनने के लिए हजारों , लाखों की भीड़ तो इकट्ठी हो जाती है लेकिन उनके उपदेशों का असर किसी पर भी नहीं होता l इसका कारण यही है कि उनमे से कुछ को छोड़ कर शेष सब उपदेश तो अच्छा देते हैं लेकिन उनकी असलियत सिर्फ ईश्वर ही जानते हैं , उनके उपदेश और आचरण में बहुत अंतर है l यही कारण है कि संसार में इतनी अशांति , इतना तनाव है l संसार को सही राह दिखाने की जिम्मेदारी ईश्वर ने जिनको सौंपी है उनकी राह ---- ? एक इतिहास का प्रसंग है ------ सम्राट बिंबसार का शासनकाल था l एक साल लू बहुत चली , प्रजा के झोंपड़े फूस के बने थे l लोग लापरवाही करने लगे ,इस कारण अग्निकांड की घटनाएँ बहुत अधिक होने लगीं और शासन द्वारा दी जाने वाली सहायता राशि का खरच भी बढ़ गया l लोगों की लापरवाही रोकने के लिए राजाज्ञा प्रसारित हुई कि जिसका घर जलेगा उसे एक वर्ष तक शमशान में रहने का दंड भुगतना पड़ेगा l लोग चौकन्ने हो गए l एक दिन राजा के भूसे के कोठे में आग लगी और देखते ही देखते वह जल गया l समाचार मिलने पर दरबार से राजा को श्मशान में रहने की आज्ञा हुई l दरबारियों ने समझाया कि ---- " नियम तो प्रजा जनों के लिए होते हैं , राजा तो उन्हें बनाता है इसलिए वे उस पर लागू नहीं होते l " परन्तु बिंबसार ने किसी की न मानी और वे एक वर्ष तक फूस की झोंपड़ी बनाकर श्मशान में रहने लगे l समाचार फैला तो सतर्कता सभी ने अपनाई और अग्निकांड का सिलसिला समाप्त हो गया l
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