लघु -कथा ---- एक वृक्ष पर उल्लू बैठा था , उसी पर आकर एक हंस भी बैठ गया और स्वाभाविक रूप से बोला --- आज सूर्य प्रचंड रूप से चमक रहे हैं इससे गर्मी तेज हो गई है l उल्लू ने कहा ---सूर्य कहाँ है ? गरमी तो अंधकार बढ़ने से होती है , जो इस समय भी हो रही है l उल्लू की आवाज सुनकर एक बड़े वट वृक्ष पर बैठे अनेक उल्लू वहां आकर हंस को मूर्ख बताने लगे और सूर्य के अस्तित्व को स्वीकार न कर हंस पर झपटे l हंस अपने प्राण बचाकर बचाकर भाग खड़ा हुआ l उल्लू को दिन में दिखाई नहीं देता इसलिए वह अंधकार को ही सत्य मानता है l आज की स्थिति कुछ ऐसी ही है l सच्चाई , ईमानदारी और विवेक की बात करने वालों का बहिष्कार किया जाता है और जो अनैतिक , अमर्यादित कार्य करते हैं , या गलत कार्य करने वालों का सहयोग करते हैं उनको महत्त्व दिया जाता है l समस्या में ही समाधान निहित है l जिस दिन सरोवर से बहुत सारे हंस उड़कर वृक्ष पर बैठे हंस के पास आ जायेंगे और अपने हंस की बात का समर्थन करेंगे , अपनी विवेक शक्ति से प्रतिपक्षी को निरुत्तर कर देंगे उस दिन सत्य की जीत होगी l
2 . एक मनुष्य ने किसी महात्मा से पूछा , महात्मन ! मेरी जीभ तो भगवान का नाम जपती है , पर मन उस ओर नहीं लगता l महात्मा बोले -- भाई ! हमारा यह शरीर ईश्वर की दी हुई विभूति है l इस बात की प्रसन्नता मनाओ कि कम से कम जीभ तो भगवान का नाम लेती है , एक अंग ने तो उत्तम मार्ग पकड़ा है l धीरे -धीरे प्रयास करते रहो और सत्कर्म करो तो एक दिन मन भी निश्चित रूप से ठीक रास्ते पर आ जायेगा l शुभारम्भ छोटा भी हो तो भी निरंतर प्रयास से सफलता मिलती है l
No comments:
Post a Comment