प्राचीन कालकाल की बात है ---एक गुरुकुल के प्रधान आचार्य अपने शिष्यों के बार -बार अनुरोध करने पर भी उन्हें ज्यादा दिन अपने समीप नहीं रहने देते थे l शिष्यों ने इसका कारण पूछा तो वे बोले ---जैसे गंगा तट पर रहने वाले शुद्धता के लिए गंगा छोड़कर दूसरे तीर्थों को जाते हैं , वैसे ही ज्यादा समीपता बढ़ने से अनादर का भाव जन्म लेता है l आचार्य की व्याख्या शिष्यों की समझ में आ गई l एक कथा है -- गुरु और शिष्यों के संबंध में मर्यादा जरुरी है --- एक गुरु के अनेक शिष्य थे , लेकिन उनमे से चार -पांच छात्रों पर वे अपना विशेष स्नेह लुटाते थे l ज्ञान दान के बाद अतिरिक्त समय में मित्रवत व्यवहार था l उन छात्रों की चंचलता , हँसी -मजाक आदि व्यवहार को वे सरलता से लेते थे l छात्रों पर स्नेह इस कदर था कि वे उनकी गलतियों , उनकी अपराधिक प्रवृतियों पर भी वे उन्हें टोकते -रोकते नहीं थे l प्राप्त ज्ञान और प्रखर बुद्धि के कारण वे शिष्य उच्च पदों पर भी पहुंचे लेकिन उनकी अपराधिक प्रवृति ने अनेक अपराधी तैयार कर दिए , समाज का वातावरण दूषित हुआ l ऋषियों का वचन है कि --बुद्धिजीवी , विवेकशील व्यक्ति पर भगवान ने इस बगिया के माली का भार सौंपा है , इस जिम्मेदारी को ईमानदारी से न निभाने पर प्रकृति से दंड अवश्य मिलता है -------
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