पुराण में अनेक कथाएं हैं जिनमे यह बताया गया है कि भगवान को छल , कपट , अहंकार पसंद नहीं है l चाहे कोई भी हो , वे उसके अहंकार का अंत करते हैं l हर अहंकारी इस सत्य को जानता भी है लेकिन वह इसे छोड़ नहीं पाता l महाभारत की एक कथा है ---- महाभारत का युद्ध आरम्भ होने वाला था l पांडवों के शिविर में उनके पक्ष के सभी महावीर उपस्थित थे l शिविर में चर्चा होने लगी कि कौन महावीर इस महाभारत के महासमर को कितने दिन में समाप्त कर सकता है L युधिष्ठिर ने कहा --- पितामह भीष्म इसे एक महीने में , द्रोणाचार्य पंद्रह दिनों में और कर्ण ने तो केवल छह दिनों में युद्ध को समाप्त करने की बात कही है l " यह सुनकर अर्जुन बोले ---- "वैसे तो युद्ध के संबंध में जय , पराजय की कोई पहले से कोई घोषणा नहीं कर सकता , फिर भी मैं आपको आश्वस्त करता हूँ कि मैं स्वयं इस युद्ध को एकम दिन में समाप्त करने में समर्थ हूँ l " अर्जुन की यह बात सुनकर भीम के पौत्र यानि उसके पुत्र घटोत्कच का पुत्र बर्बरीक जो एक महा तपस्वी और परमवीर था , उसे इसका अहंकार भी था , वह बोला --- " मैं आप सबको विश्वास दिलाता हूँ कि मैं इस युद्ध को केवल एक मुहूर्त में समाप्त कर सकता हूँ l " यह सुनकर सबको बहुत आश्चर्य हुआ l श्रीकृष्ण ने ऊ८श्र्श्र कहा --- " वत्स ! तुम भीष्म , द्रोणाचार्य , कर्ण आदि महारथियों से सुरक्षित सेना को किस विधि से एक मुहूर्त में समाप्त कर पाओगे ? " इस पर बर्बरीक ने कहा --- " इस प्रश्न का उत्तर मैं कल युद्ध भूमि में दूंगा l " दूसरे दिन प्रात : जब दोनों सेनाएं युद्ध भूमि में खड़ी हुईं तब बर्बरीक ने अपने धनुष पर बाण चढ़ाया और उस बाण को लाल रंग की भस्म में रंग दिया और बाण को प प्रत्यंचा चढ़ाकर छोड़ दिया l बाण से जो भस्म उड़ी वह दोनों सेनाओं के मर्मस्थल पर गिरी l केवल पांच पांडव , , कृपाचार्य और अश्वत्थामा के शरीर से उसका स्पर्श नहीं हुआ l अब बर्बरीक ने कहा --- इस क्रिया से मैंने मरने वालों के मर्मस्थल का निरीक्षण कर लिया है l अब बस , दो घड़ी में मैं इन्हें मार गिरता हूँ l " यह सुनकर भगवान श्रीकृष्ण ने तुरंत अपने सुदर्शन चक्र से उसका मस्तक काट दिया l इससे भीम , घटोत्कच आदि सबको बहुत दुःख व आश्चर्य हुआ l तब वहां ब्रह्माजी आए और उन्होंने कहा --- " बर्बरीक पूर्वजन्म में यक्ष था और इसने अहंकार वश कहा था कि किसी देवता को पृथ्वी पर अवतार लेने की जरुरत नहीं , यह कार्य मैं अकेले ही कर सकता हूँ , अवतार का प्रयोजन जाने बिना उसने अभिमानवश यह बात कही l " श्रीकृष्ण ने उसका मस्तक काटकर उसके अभिमान का अंत किया l श्रीकृष्ण ने वहां उपस्थित सिद्ध चंडिका से कहा --- " आप इसके मस्तक पर अमृत सिंचन करें ताकि यह अमर हो जाये l ' अमृत सिंचन से जीवित होने पर बर्बरीक के मस्तक ने भगवान श्रीकृष्ण से निवेदन किया कि वह इस महायुद्ध को देखना चाहता है l तब भगवान ने उसके मस्तक को पर्वत शिखर पर स्थापित कर दिया l युद्ध की समाप्ति पर जब भीम , अर्जुन आदि को अपनी वीरता का अभिमान हुआ तो भगवान श्रीकृष्ण ने कहा --- ' क्यों न हम बर्बरीक से पूछ लें l ' जब सब इस प्रश्न को लेकर बर्बरीक के पास गए तो उसने कहा --- " आप सब बिना किसी कारण अभिमान कर रहे हैं l मैंने यही देखा कि इस महायुद्ध में सभी योद्धा स्वयं महाकाल मके द्वारा मारे गए l श्रीकृष्ण के रूप में आप सब उन्हें पहचानों और अपने अभिमान को दूर कर लो क्योंकि अभिमान कभी भी शुभ और सुखद नहीं होता l
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