मनुष्य का जन्म तो हमें मिल जाता है लेकिन यदि जीवन जीने की कला का ज्ञान न हो तो वह जीवन ऐसे ही रोते -कल्पते , छल -कपट षड्यंत्र करते , बीमारी और तनाव झेलते या ईर्ष्या और अहंकारवश दूसरों को नीचा दिखाते , उनकी खुशियाँ छीनते बीत जाता है l कलियुग की सबसे बड़ी सच्चाई यही है कि मनुष्य न तो स्वयं सुख -चैन से जीता है और न ही दूसरों को सुख चैन से जीने देता है l जीवन जीने की कला सिखाने वाले हमारे महाकाव्य है लेकिन उसके विभिन्न प्रसंगों से जो अच्छाई सीखनी चाहिए वह नहीं सीखता l उन प्रसंग में जो अन्याय और अनीति है उसे ग्रहण कर लेता है l महाभारत में दुर्योधन युवराज था l उस समय विशाल भारत में एक से बढ़कर एक ऋषि , विद्वान् थे , स्वयं भगवान श्रीकृष्ण थे , हस्तिनापुर में ही महात्मा विदुर महान नीतिज्ञ थे लेकिन दुर्योधन को तो सब को छोड़कर केवल शकुनि की ही सलाह पसंद आती थी l षड्यंत्रकारी शकुनि की सलाह पर चलने वाला दुर्योधन पूरे कौरव वंश के अंत का जिम्मेदार हो गया l केवल महाकाव्य ही नहीं अनेक छोटी -छोटी कहानियाँ हैं जो हमें सिखाती हैं कि हमें मित्रता कैसे लोगों से करनी चाहिए , किन पर विश्वास करें और किस की सलाह माननी चाहिए l एक कथा है ----- एक राजा था l उसका विशाल महल , बाग़ -बगीचा था l अनेक फलदार पेड़ थे l एक फलदार पेड़ उसके शयन कक्ष की खिड़की के बिलकुल सामने था l उस के फल खाने रोज एक बन्दर आया करता था l धीरे -धीरे राजा की उस बन्दर से मित्रता हो गई l राजा जब विश्राम करता तब वह बन्दर भी वहां आ जाता l बन्दर नकलची होता है , जब उसने सेवकों को पंखा झलते देखा तो अब उसने उनके हाथ से पंखा छीन लिया और राजा के विश्राम करने पर बन्दर पंखा झलता l दिन बीतते गए l एक दिन जाने कहाँ से एक मक्खी उस कक्ष में आ गई और राजा जब सो रहा था तो उसकी नाक पर बैठ गई l बन्दर उसे बार -बार पंखे से भगाने की कोशिश कर रहा था लेकिन वह पुन: आकर नाक पर बैठ जाती l अब बन्दर ने पास में रखा चाकू उठा लिया और जैसे ही मक्खी नाक पर बैठी , उसने चाकू मारा l राजा चीख कर उठ बैठा l सारे सेवक दौड़कर अन्दर आए , बन्दर खिड़की से कूदकर जंगल में भाग गया l राज पुरोहित आए , उन्होंने गंभीरता से कहा -- हमने तुम्हे कितनी बार समझाया कि मूर्ख से मित्रता नहीं करो , यह उसी का परिणाम है l
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