पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ---- ' ब्राह्मण कुल में पैदा होकर भी जो नीच कर्म करते हैं , क्रोधी , ईर्ष्यालु और अहंकारी हैं तो ऐसे व्यक्ति को ब्राह्मण नहीं कहा जा सकता l ईर्ष्या , अहंकार और क्रोध को छोड़कर कोई भी व्यक्ति ब्राह्मण बन सकता है , भले ही वह किसी भी वर्ण में जन्म ले l ब्राह्मण को स्वयं अन्शासित रहकर सोच समझकर बोलना चाहिए तथा उसका जीवन अपरिग्रही , सौम्य , सेवा पारायण एवं सदाचारयुक्त होना चाहिए l रावण ब्राह्मण का वंशज था लेकिन अहंकार आदि दुर्गुणों के कारण राक्षस कहलाया l विश्वामित्र जन्म से क्षत्रिय थे l जब तक उनमे क्रोध रहा , वसिष्ठ ऋषि के प्रति ईर्ष्या तथा अहंकार रहा , उनकी तपस्या पूर्ण नहीं हुई , इन दुर्गुणों को छोड़कर ही वे ब्रह्मर्षि कहलाए l एक बार किसी शिष्य ने आचार्य जी से पूछा --- " गुरूजी , तपस्या बड़ी है या सेवा ? " उन्होंने कहा --- " वत्स ! ऋषि विश्वामित्र ने कठोर तपस्या की थी , किन्तु मेनका के आने पर वे तपस्या भंग कर बैठे और जब एक कन्या को जन्म देकर मेनका स्वर्ग वापस चली गई तो दुःखी और क्रोधित होकर वे कन्या को जंगल में पेड़ के नीचे रोता छोड़कर फिर तप करने चले गए , किन्तु कण्व ऋषि ने उस बालिका को उठाकर पाला , उसे पुत्रीवत स्नेह दिया l तो बताओ दोनों में से कौन श्रेष्ठ है ? शिष्य का समाधान हो गया l
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