एक कथा है --- एक बार पार्वती जी लक्ष्मी जी के यहाँ गईं l उनके स्वर्ण महल , स्वर्ण सिंहासन तथा वैभव को देखकर शिवजी से कहने लगीं --- " मुझे भी सोने का महल चाहिए l " शिवजी अपरिग्रही हैं , श्मशान में रहकर भस्म लगाते हैं , उन्होंने पार्वती जी को बहुत समझाया लेकिन पार्वती जी नहीं मानीं तो उन्होंने विश्वकर्मा को बुलाकर महल बनाने की आज्ञा दी l महल बनकर तैयार हुआ तो गृह प्रवेश के लिए वेदपाठी ब्राह्मण की आवश्यकता हुई l रावण उनका प्रिय शिष्य था l उससे ही गृह प्रवेश कराया गया l दक्षिणा माँगने को कहा गया तो रावण ने कहा ---- ' मुझे तो आपका स्वर्ण का महल ही दक्षिणा में चाहिए l " औघड़दानी शिवजी ने वह सोने का महल ( लंकापुरी ) उसे दे दिया और स्वयं फिर कैलाश पर्वत पर चले गए l
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